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परिशिष्ट (ज)
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"महान् सुल्तान प्रख्यात बादशाह, प्रभु उसके राज्य और हुकूमतकी वृद्धि करे।"
यह सिक्का आगरेमें ढाला गया था।
इस सिक्केकी दूसरी तरफ़ ' ला इलाहि-इल-अल्लाह मुहम्मद रसूल-अल्लाह । यह कलमा, तथा कुरानका एक वाक्य लिखा गया था; उसका अर्थ यह होता था,
“परमात्मा जिसपर प्रसन्न होता है, उसपर अत्यंत दया करता है।"
इस सिकेके चारों तरफ पहिलेके चार खलीफों के नाम भी लिखे गये थे । इस सिक्के की आकृति सबसेपहले मौलाना मकसूदने बनाई थी। उसके बाद मुल्ला अलीअहमदने इसे सुधारा था।
एक तरफ इसमें इस अर्थवाले शब्द लिखे थे,-"ईश्वरके मार्गमें, अपने सहधर्मियोंकी सहायताके लिए जो सिक्का खर्च होता है वह सर्वोत्तम है।"
दूसरी तरफ लिखा था,-'' महान् सुल्तान सुप्रसिद्ध खलीफा, सर्वशक्तिमान उसके राज्य और हुकूमतकी वृद्धि करे, तथा उसकी न्यायपरायणता और दयालुताको अमर रक्खे ।" ___कहा जाता है कि, पीछेसे इनपरसे उपर्युक्त सभी शब्द निकालकर, मुल्लां अलीअहमदने शेख फैज़ीकी दो रुवायात लिखी थीं।
एक तरफ़की रुबाईका अर्थ होता है,---
“ सात समुद्रोमें जो मोती होते हैं वे सूर्यके प्रभावहीसे होते हैं। काले पर्वतोमें जो रत्न होते हैं उनका कारण भी सूर्यहीका प्रकाश है । कानोंमसे जो सोना निकलता है वह भी सूर्यके मंगलकारी प्रकाशकाही प्रताप है । वही सोना अकबरकी मुहरसे उत्तमाको प्राप्त होता है।
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