Book Title: Surishwar aur Samrat Akbar
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharm Laxmi Mandir Agra

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Page 461
________________ ४०१ comwwwwwwwwwwww सूरीश्वर और सम्राट्। अनेक भागोंमें विभक्त कर दिये थे। सबसे पहले हम उस समयके सोनेके सिक्कोंका उल्लेख करेंगे । 'ए मॅन्युअल ऑफ मुसलमान न्युमिसमेटिक्स' (A Manual of Musalman Numismatics ) के पृ० १२० में लिखा गया है कि, “ Also there are the large handsome gold piecos of 200, 100, 50 and 10 muhars of Akbar and his three successors, which were, no doubt, not for currency use exactly, but for presentation in the way of honour for the emperor or offered to the emperor or king for tribute or acknowledgment of fealty, nazarana as it is called. अर्थात्-इसके सिवाय दूसरे बड़े सुंदर सोनेके सिक्के थे । वे अकबर और उसके पीछेके तीन बादशाहोंके थे। वे २००, १००, ५० और १० के थे। उन्हें अशरफ़ीयां कहते थे। यह ठीक है कि ये अशरफीयां चलनी सिकेकी तरह काममें नहीं आती थीं। वे सम्राट्के सम्मानार्थ, अथवा बादशाहको या राजाको कर देने में या नज़राना देने में काम आती थीं। ____ अकबरके इन सोनेके सिक्कोंका वर्णन, 'आईन-इ-अकबरी' के प्रथम भागके अंग्रेजी अनुवादके पृ० २७ में इस तरह दिया गया है: (१) 'शाहन्शाह ' इस नामका एक गोल सोनेका सिक्का था, जिसका वज़न १०१ तोला ९ माशा ६ सुर्ख था। उसका मूल्य एक सौ ' लालेजलाली' अशरफ़ी-जिसका वर्णन आगे दिया गया है-होता था। इसके एक तरफ़ शाहन्शाहका नाम था और सिकेके किनारेके पाँच मागोंमें इस अभिप्रायको बतानेवाले शब्द थे, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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