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परिशिष्ट (ज).
४१३ 'टेवरनियर्स ट्रेवल्स इन इंडिया के वॉ. १ लेके पृ० १३-१४ में एक महमूदीकी ठीक ठीक कीमत बीस पैसे बताई गई है, और ऊपर तो २५-२६ पैसे बताई गई है । इसी तरह 'द इंग्लिश फेक्टरीज इन इंडिया (ई. स. १६१८-१६२१ ) के पृ० २६९ में एक महमूदीका मूल्य ३२ पैसे लिखा है। इससे मालूम होता है कि, उसका मूल्य बदलता रहा होगा। अकबरके समयमें महमूदीकी कीमत कितनी थी सो ठीक ठीक मालूम नहीं हुई । मगर, अनुमानसे कहा जासकता है, कि उसके समयमें भी क़ीमत बदलती रही होगी।
इसके अलावा एक लारी नामक सिक्का चलता था। वह परशिअन सिका था। और खरे सोनेका बना हुआ था। उसकी आकृति लंब-गोल और कीमत १ शिलिंग ६ पेन्स थी।
'दि इंग्लिश फेक्टरीज़ इन इंडिया' (ई. स. १६१८ से १६२१) पृ० २२७ के नोटमें इसकी कीमत लगभग १ शिलिंग लिखी है।
एक टंका नामक ताँबाका सिक्का था। जैनग्रंथोमें इसका बहुत उल्लेख आता है । विन्सेंट ए. स्मिथने ' इंडिअन एण्टिक्वेरी ' वॉ० ४८, जुलाई सन् १९१९ के अंकके पृ. १३२ में लिखा है कि,-"टंका
और दाम दोनों एक ही हैं।" मि० स्मिथका यह कथन छोटे टंकोंके लागू पड़ता है । क्योंकि, कॅटलॉग ऑफ दि इंडिया कोइन्स इन द ब्रिटिश म्यूजिअम ' के पृ० xc में दिये हुए सिक्कोंके वर्णनमें दो प्रकारके टंका बताये गये हैं। छोटे और बड़े । बड़े टकेका वजन बताया गया है ६४० ग्रेन और छोटेका ३२० ग्रेन । बड़ेका मूल्य दो दाम बताया गया है और छोटेका एक । अतएव स्मिथका मत छोटे टंकेके साथ लागू होता है । मि० बर्डकी 'मीराते अहमदी' के
१ देखो-डिस्क्रिप्शन ऑफ एशिया पृ० १०३
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