Book Title: Surishwar aur Samrat Akbar
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharm Laxmi Mandir Agra

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Page 467
________________ ४१० सूरीश्वर और सम्राट् । __" ऊपर जिस अशरफ़ीके सिक्कोंका उल्लेख किया गया है उसे 'जेरेफ़ीन अकबर ' (?) मी कहते थे । क्योंकि अकबरहीने सबसे पहले यह सिक्का चलाया था । और इसका मूल्य १३॥) रु० था । इसी तरह चादीके सिक्के भी अनेक चलते थे । उनमेंसे निम्न लिखि. तको अबुल्फजलने मुख्य बताया है।" (१) रुपया-यह गोल था । वजन ११॥ माशा था। सबसे पहले शेरशाहके समयमें रुपयेका उपयोग होने लगा था। उसके एक तरफ़ 'अल्लाहो अकबर जल्लजलालहू' शब्द थे और दूसरी तरफ़ वर्ष लिखा गया था । उसका मूल्य लगभग ४० दाम था। (२) जलालह-इसकी आकृति चौरस थी। इसकी कीमत और मुहर रुपयेके समानही थे। (३) दर्ब-यह जलालहसे आधा था । ( ४ ) चन-यह जलालहका चौपाई था (५) पन्दउ-यह जलालहके पाँचवें भाग जितना था। (६) अष्ट---यह जलालहके आठवें भाग जितना था। (७ ) दसा---यह जलालहका दसवाँ भाग था। (८) कला--यह जलालहका सोलहवाँ भाग था। (९) सूकी-यह जलालहका बीसवाँ भाग था। अबुल्फज़ल कहता है कि,-" जैसे जलालह नामक चौरस आकृतिवाले सिकेके जुबाजुदा हिस्से किये गये थे उसी तरह गोल सिकके-जिसका नाम रुपया दिया गया था-भी कई हिस्से किये गये थे । मगर इन भागोंकी आकृति कुछ भिन्न थी।" विन्सेंट ए. स्मिथ अग्ने अंग्रेज़ी ' अकबर' नामके ग्रंथके दि इंलिश फेक्टरीज इन इंडिया (ई. स. १६१८-१६२१ ) के पृष्ठ २६९ में रुपयेकी कीमत ८. पैसे बताई गई है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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