Book Title: Surishwar aur Samrat Akbar
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharm Laxmi Mandir Agra

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Page 466
________________ परिशिष्ट (ज). (२०) बीसवाँ मन नामक सिक्का इलाही और जलालीके चौथे भाग जितना था। (२१ ) इक्कीसवाँ आघासलीमी सिक्का अदलगुत्कका चौथा भाग था। ( २२ ) बाईसवाँ पंजनामक सिक्का इलाहीके पांचवें भाग जितना था। (२३) तेईसवॉ पंदो नामक सिक्का था। वह लालेजलाली का पाँचवाँ भाग था । उसके एक तरफ 'कमल' और दूसरी तरफ 'गुलाब ' बनाया गया था। (२४ ) चौबीसवाँ समनी अथवा अष्टसिद्ध नामक सिक्का था । वह इलाही सिक्केके आठवें भाग जितना था। उसके एक तरफ 'अल्लाहो अकबर' और दूसरी तरफ 'जल्लनलालहु' शब्द लिखे गये थे। (२५) पचीसवाँ कला नामक सिक्का इलाही सिकेका सोल. हवाँ भाग था । उसके दोनों तरफ जंगली गुलाब लिखा गया था। (२६ ) छब्बीसवाँ झरह नामका सिक्का इलाही सिकेके बत्तीसवें भाग जितना था । मुहर उस पर कलाके जैसी थी। इस तरह अकबरके छब्बीस सिक्के स्वर्णके थे। अबुल्फ़ज़ल लिखता है कि,-" इनमेंसे लाले जलाली, धन ( दहन ) और मन नामके तीन सिक्के तो हरेक महीनेतक निरंतर शाही टकसालमें ढाले जाते थे। दूसरे सिके, जब ख़ास हुक्म मिलता था तभी ढलते थे ।" इस कथनसे यह अनुमान सहनीमें हो सकता है कि,-उपर्युक्त छब्बीस सिक्कोंमेंसे ये तीन ( जालेजलाली, धन और मन) सिक्के व्यवहारमें आते थे । ई. स. १६७३ में मुद्रित 'डिस्क्रिप्शन ऑफ एशिया ' के पृ० १६३ पर (Description of Asia by ogilby Page 163 ) लिखा है कि, 52 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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