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________________ परिशिष्ट (ज) ४०५ "महान् सुल्तान प्रख्यात बादशाह, प्रभु उसके राज्य और हुकूमतकी वृद्धि करे।" यह सिक्का आगरेमें ढाला गया था। इस सिक्केकी दूसरी तरफ़ ' ला इलाहि-इल-अल्लाह मुहम्मद रसूल-अल्लाह । यह कलमा, तथा कुरानका एक वाक्य लिखा गया था; उसका अर्थ यह होता था, “परमात्मा जिसपर प्रसन्न होता है, उसपर अत्यंत दया करता है।" इस सिकेके चारों तरफ पहिलेके चार खलीफों के नाम भी लिखे गये थे । इस सिक्के की आकृति सबसेपहले मौलाना मकसूदने बनाई थी। उसके बाद मुल्ला अलीअहमदने इसे सुधारा था। एक तरफ इसमें इस अर्थवाले शब्द लिखे थे,-"ईश्वरके मार्गमें, अपने सहधर्मियोंकी सहायताके लिए जो सिक्का खर्च होता है वह सर्वोत्तम है।" दूसरी तरफ लिखा था,-'' महान् सुल्तान सुप्रसिद्ध खलीफा, सर्वशक्तिमान उसके राज्य और हुकूमतकी वृद्धि करे, तथा उसकी न्यायपरायणता और दयालुताको अमर रक्खे ।" ___कहा जाता है कि, पीछेसे इनपरसे उपर्युक्त सभी शब्द निकालकर, मुल्लां अलीअहमदने शेख फैज़ीकी दो रुवायात लिखी थीं। एक तरफ़की रुबाईका अर्थ होता है,--- “ सात समुद्रोमें जो मोती होते हैं वे सूर्यके प्रभावहीसे होते हैं। काले पर्वतोमें जो रत्न होते हैं उनका कारण भी सूर्यहीका प्रकाश है । कानोंमसे जो सोना निकलता है वह भी सूर्यके मंगलकारी प्रकाशकाही प्रताप है । वही सोना अकबरकी मुहरसे उत्तमाको प्राप्त होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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