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________________ ४०६ सूरीश्वर और सम्राट् । बीचमें 'अल्लाहो अकबर' और 'जल्लेजलालहू ।' शब्द थे। दूसरी तरफ़की रुबाईका अर्थ होता है,____ " यह सिका आशाका अलंकार है । इसकी मुहर अमर है। सिकेका नाम अमर्त्य है और मंगलसूचक चिनकी भाँति सूर्यने प्रत्येक समयमें उसपर अपना प्रकाश डाला है। बीचमें इलाही संवत् लिखा गया था। (२) दूसरा सोनेका सिक्का उपर्युक्त प्रकार हीकी आकृति और अक्षरवाला था । वजनमें फर्क था । इसका वज़न ९१ तोला ८ माशे था । उसका मूल्य सौ गोल अशरफिया था। इन गोल अशरफियोका वज़न प्रत्येकका ११ माशे था। ( ३ ) तीसरा रहस नामका सिक्का था । यह सिक्का भी दो तरहका था । एकका वज़न शाहन्शाह नामके सिक्केसे आधा था और दूसरेका वज़न दूसरे नंबरके सिक्केसे आधा था। यह सिक्का कई बार चौरस भी ढाला जाता था। इसके एक तरफ़ शाहन्शाह सिकेके जैसी ही आकृति थी और दूसरी तरफ़ फैजीकी रुबाई लिखी थी। उसका अर्थ यह होता है, “शाही खजानेका प्रचलित सिक्का शुभ भाग्यके ग्रह-युक्त है। हे सूर्य ! इस सिकेकी वृद्धि कर; क्योंकि हर समय अकबरकी मुहरसे यह सिक्का उत्तमताको प्राप्त हुआ है । (४) चौथा आत्मह नामका सिक्का था। यह सिक्का प्रथम शाइन्शाह नामक सिक्केसे चोथाई था। उसकी आकृति चौरस और गोल थी। इनमेंसे कइयोंपर तो शाहन्शाह नामक सिकेके समानही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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