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________________ परिशिष्ट (ज) अक्षर लिखे गये थे, और कइयों पर फैजीकी रुबाई दी गई थी। उसका अर्थ यह होता है:__" यह सिका भाग्यशाली पुरुषके हाथको सुशोभित करे नौ स्वर्गों और सात ग्रहोंका अलंकार बने; यह सिक्का सोनेका है इसलिए कार्य भी इसके द्वारा सुनहरी ही हों; (और) यह सिक्का बादशाह अकबरकी कीर्तिको हमेशा कायम रक्खे ।" दूसरी तरफ रहस नामक सिक्केवाली रुबाई ही लिखी गई थी। (५) पाँचवाँ बिन्सत नामक सिका था। उसकी आकृति आत्मह नामक दोनों सिक्कोंकीसी थी। इसका मूल्य शाइन्शाह नामक सिक्केका ६ था । ऐसे ही दूसरे भी कई सिके थे जिनका मूल्य शाहन्शाह सिकेका है और जितना था। (१) छठा चुगुल (जुगुल ) नामका सिक्का था वह शाहशाह सिकेके पचासवे भाग जितना था। उसका मूल्य दो अशरफियाँ था। (७) सातवाँ सिक्का लालेजलाली नामका था। उसकी आकृति गोल थी। मूल्य दो अशरफियाँ था। उसके एक तरफ़ 'अल्लाहो अकबर ' और दूसरी तरफ़ 'यामुईनु ' शब्द थे। (८) आठवाँ आफताबी नामका सिक्का था। वह गोल था। उसका वज़न १ तो० २ मा० ४॥ सुर्ख था । मूल्य बारह रुपये था । उसके एक तरफ़ ' अल्लाहो अकबर जल्लजलालहू' और दूसरी तरफ़ इलाही संवत् तथा टकसालका नाम था । (९) नववाँ सिक्का इलाही नामका था । उसकी आकृति गोल थी और वजन १२ मासा १॥ सुर्ख था । उसपर मुहर आफ़ताची सिकेके समानही थी । उसका मूल्य दश रुपये था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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