Book Title: Surishwar aur Samrat Akbar
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharm Laxmi Mandir Agra

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Page 443
________________ सूरीश्वर और सम्राट्। Arunawwarewanaparimanon परिशिष्ट (ङ) फर्मान नं. ५ का अनुवाद अल्लाहो अकबर । हकको पहचाननेवाले, योगाभ्यास करनेवाले विजयदेवसूरिको, हमारी ख़ास महरबानी हासिलकर मालूम हो कि, तुमसे पत्तन में मुलाकात हुई थी । इससे एक सच्चे मित्रकी तरह (मैं) तुम्हारे प्रायः समाचार पूछता रहता हूँ। (मुझे) विश्वास है कि तुम भी हमारे साथ सचे मित्रका (तुम्हारा) जो संबंध है उसको नहीं छोड़ोगे। इस समय तुम्हारा शिष्य दयाकुशल हमारे पास हाज़िर हुआ है । तुम्हारे १ 'पत्तन' से गुजरातके 'पाटण' को नहीं मगर मांडवगढ़' (मालवा) को समझना चाहिए । क्योंकि, जहाँगीर और विजयदेवलूरि मांडवगढ़में मिले थे । इस भेटका पूर्ण वृत्तान्त विद्यासागरके प्रशिष्य अथवा पंचा. यणके शिष्य कृपासागरने 'श्री नेमिसागर निर्वाणरास' में दिया है । उसमें भी जहाँ मांडवगढ़के श्रावकोंका वर्णन लिखा है यहाँ स्पष्ट लिखा है कि, 'बीरदास छाजू वळी ए, शाह जगू गुण जाण के; 'पारणे' ते बस इत्यादिक श्रावक घणाए ॥ ९१ ॥ (जैनरासमाला, भाग पहला पृ० २५२) इससे स्पष्ट मालम होता है कि, 'मांडवगढ़' उस समय पाटणके नामसे भी ख्यात था। २ ये वेही दयाकुशलजी हैं जिन्होंने विक्रम संवत् १६४९ में विजय. सेनसूरिकी स्तुतिमें 'लाभोदय' रारा लिखा है। इनके गुरुका नाम कल्या. कुशल था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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