Book Title: Surishwar aur Samrat Akbar
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharm Laxmi Mandir Agra

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Page 446
________________ परिशिष्ट (ङ) ३९१ समाचार उसके द्वारा मालून हुए । इससे हमें बड़ी प्रसन्नता हुई । तुम्हारा शिष्य भी अच्छी तर्कशक्ति रखनेवाला और अनुभवी है । यहाँ योग्य जो कुछ काम हो वह तुम अपने शिष्यको लिखना ( जिससे ) हुजूर को मालूम हो जाय । हम उसपर हरेक तरहसे ध्यान देंगे । हमारी तरफुले बेफिक्र रहना और पूजने लायक जातकी पूजाकर हमारा राज्य कायम रहे इस प्रकारकी दुआ करनेके काममें लगे रहना । लिखा ता० १९ महीना शाहबान, सन् १०२७. मुहर. इस मुहर, जहाँगीर, मुरीद और शाह नवाज़खाँ इतने १ इसका खास नाम ईरज था । यह अपनी वीरताके लिए बहुत प्रसिद्ध हुआ था । जब यह युवा था, तब 'खानखान- ई- जवान' कहलाता था । राज्यके चालीसवें वर्ष में यह चारसौका अधिपति बनाया गया था । राज्यके अड़तालीसवें वर्षमें इसने मलिक अम्बर के साथ ' खारकी ' में लड़कर 'बहादुर' की पदवी हासिल की थी। शाहजहाँ के समय में शाहनवाज़खान - ई - शफी नामका एक उमराव हुआ है । इसलिए दोनोंको भिन्न भिन्न बतानेके लिए इतिहास लेखक इसको ' शाहनवाज़खान- इ - जहाँगीरी' लिखते हैं । जहाँगीरने इसको हि० स० १०२० में ‘ शाहनवाजखाँ' पदवी देकर तीन हज़ारी बनाया था और हि० सं० १०२७ में पाँच हज़ारी बनाया था । जहाँगीर के राज्य के बारहवें वर्षमें इसने दक्षिण में कुमार शाहजहाँ की नौकरी करली थी । यह एक अच्छा सैनिक था । परन्तु कपड़ोंके विषय में यह बहुत ही लापरवाह था । इसकी एक कन्याका ब्याह शाहजहाँ के साथ हुआ था | ग्रांट - लिखित मध्यप्रान्तों के गेज़ेटियर के अनुसार इस ईरज ( शाहनवाज़ ) की का बुरहानपुर में है । यद्द 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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