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विशेष कार्यसिद्धि। अंशको उद्धृत किया है जो उपर्युक्त कथनको प्रमाणित करता है। यह पत्र उसने लाहौरसे ता. ३ सितंबर सं. १५९५ के दिन लिखा था । उसमें उसने लिखा था,___" He follows the sect of the Jains ( Vertei ).
__ अर्थात-अकबर जैनसिद्धान्तोंका अनुयायी है। उसने कई जनसिद्धान्त भी उस पत्रमें लिखे हैं । इस पत्रके लिखनेका वही समय है जिस समय विजयसेनसूरि लाहोरमें अकबरके पास थे ।
___ इस प्रकार विदेशियोंको भी नत्र अकबरके वर्तावसे यह कहना पड़ा था कि, अकबर जैनसिद्धान्तोंका अनुयायी है, तब यह बात सहज ही समझमें आजाती है कि, अकबरकी वृत्ति बहुत ही दयालु थी।
और उस वृत्तिको उत्पन्न करनेवाले जैनाचार्य-जैनउपदेशक ही थे। इसके लिए अब विशेष प्रमाण देनेकी आवश्यकता नहीं है।
यह ऊपर कहा जाचुका है कि, बादशाहने अपने राज्यमें एक घरसमें छः महीनेसे भी ज्यादा दिनके लिए जीववधका निषेध कराया था, और उन दिनोंमें वह मांसाहार भी नहीं करता था। यह कार्य उसकी दयालुताका पूर्ण परिचायक है। पाँच पाँचसौ चिड़ियोंकी जीमें मो नित्य प्रति खाता था, मृगादि पशुओंकी जो नित्य शिकार करता था वही मुसलमान बादशाह हीरविजयमूरि आदि उपदेशकोंके उपदेशसे इतना दयालु बन गया, यह बात क्या उपदेशकोंके लिए कम महत्त्वकी है ? जैनसाधुओंके ( जैनश्रमणों) के उपदेशके इस महत्त्वको बदाउनी भी स्वीकार करता है । वह लिखता है:
" And Samanas and Brahmans ( who as far as the matter of private interviews is concerned (p. 257) gained the advantage over every one in attaining the honour of interviews with His Majesty, and in
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