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सूरीश्वर और सम्राट् । और बालकोंको कल किया था। इसके लिए अकबर उनसे बहुत नाराज हुआ था । युद्धमें भी अनीतिका व्यवहार करना अकबर राज्यधर्मविरुद्ध समझता था । अधमखाँके अत्याचारसे सम्राट स्वयं मालवेमें गया था; परन्तु उसकी माता माहम गंगाके प्रार्थना करनेपर उसको छोड़ दिया। आगरेमें जाकर अधमखाने फिर गड़बड़ प्रारंभ की । इसका परिणाम उसकी मौत हुआ । अधमखाँके बाद अब्दुलखाँ उजबक मालवे भेजा गया, और जिस बाजबहादुरने सम्राटके
की पदवी मिली थी। इससे यह इतना मगरूर होगया था कि इसने चगताई अमीरोंकी और अन्तमें बहरामखाँ तककी अवगणना की थी। इसका परिणाम यह हुआ कि बहराम खाँने इसको अपने पदका इस्तिफा देनेकी आज्ञा दी । शेख गदाईके उत्तेजित कर पर उस बनायाके किलेकी तरफ़ भेजा और पश्चात् विवशकरके उसे यात्रार्थ भेज दिया। विशेषके लिए; देखो आईन-इ-अकबरी प्रथम भागका ब्लॉकमनकृत अंग्रेजी अनुवाद । पृ. ३२५..
१-अब्दुल्लाखाँउज्बक हुमायूँ के दर्बारका एक अमीर था। हेमूंकी हारके बाद इसे 'शुजाअतखाँ' का पद दिया गया था। नौकरीके बदलेमें कालपी इसे बतौर जागीरके मिला था । गुजरातमें इसने अधमखाँके आधीन रहकर कार्य किया था। पीरमहम्मदकी मृत्यु के बाद जब बाजबहादुरने मालवा लिया था तब यह (अब्दुल्लाखाँ) पांच हजारी बनाया गया था, और लगभग असीम सत्ताके साथ मालवे भेजा गया था । इसने अपना प्रान्त वापिस जीत लिया । और माँडवेमें राजाकी भाँति राज्य करने लगा। विशेषके लिए देखो,-आईन-इ-अकबरी प्रथम भाग, ब्लॉकमनकृत अंग्रेजी अनुवाद । पृ. ३२१.
२-अबुल्फ़ज़लके कथनानुसार बाजबहादुरका असली नाम वाजि दखा था। बाजबहादुके पिताका नाम शुजाअतखाँ शूर था। इतिहास उसे शजावलखाँ या सजावलखाँ के नामस पहचानते हैं। इसीके नामसे मालवेके एक बहुत बड़े गाँवको लोग — शजावलपुर' कहते थे; जिसका असली नाम 'सुजातपुर' था । यह सारंगपुर सरकार (मालवे) के अधिकारमें था। वर्तमानमें वह विद्यमान नहीं है ।
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