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सूरीश्वर और सम्राट् ।
हुई। इसका कारण उनके लक्ष्यबिंदुकी त्रुटि थी । इस समय अकबरकी केवल हिन्दु-मुसलमान ही नहीं बल्के युरोपिअन विद्वान् भी प्रशंसा करते हैं। इसका कारण उसके गुण ही थे। यद्यपि अकबर एक मनुष्य था और उसमें अनेक दुर्गुण भी थे, जिनका निकर गत तीसरे प्रकरणमें किया जा चुका है; तथापि यह कहना ही पड़ेगा कि, उसके कई असाधारण गुणोंने उसके दुर्गुणोंको ढक दिया था। अकबरके गुणोंको देखकर कई लेखक तो यहाँ तक कहते हैं कि," अकबरने सिंहासनको देदीप्यमान कर दिया था। " कारण-सिंहासनस्थ राजाका प्रधानधर्म प्रनाको सुखी बनाना; प्रजाका कल्याण करना है । अकबरने भली प्रकारसे इस धर्मको पाला था। इसी लिए कहा जाता है कि, उसने सिंहासनको अलंकृत किया था।
अकबरमें सबसे बड़ा गुण तो यह था कि वह बड़ेसे बड़े शत्रुको भी यथासाध्य नर्मीहीसे अपने अनुकूल,-अपने आधीन बना लेता था । वह जैसा साहसी था वैसा ही सशक्त और सहनशील भी था । अपने पर आनेवाले कष्टोंको वह बड़ी धीरजके साथ सह लेता था।
अकबर मानता था कि,-" जिन राजकार्योंको प्रजा कर सकती है उनमें राजाको दखल नहीं देना चाहिए । कारण,प्रजा यदि भ्रममें पड़ेगी तो राजा उसको सुधार लेगा, मगर राजा ही यदि भ्रममें पड़ जायगा तो उसे कौन सुधारेगा ?
कैसा अच्छा खयाल है ! प्रजा-स्वातंत्र्यके कितने ऊँचे विचार हैं । प्रजाको सिर नहीं उठाने देने के लिए कानूनके नये नये बोझे तैयार करनेवाले प्रना अपने दुःखोंसे व्याकुल होकर चिल्ला न उठे
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