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. सम्राट्का शेषजीवन ।
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भारतवर्षको रसातलसे उठाकर उन्नतिके शिखर पर ला बिठाया; मस्तक पर स्थित सूर्यका प्रकाश सर्वत्र गिरने लगा । इससे अकबरके आनंदकी सीमा न रही।
___मार पाठक ! मारतका ऐसा सद्भाग्य कहाँ है कि उन्नतिका सूर्य सदैव उसके मस्तक पर ही झगमगाता रहे । पुनः वह सूर्य धीरे धीरे नीचे उतरने लगा। अवनतिकी छाया गिरने लगी। एक ओर अकबरके घरहीमें फूट फैली और दूसरी ओर उसके स्नेहियोंका क्रमश: अवसान होने लगा । अकबरको जब शान्तिके दिन देखनेका सद्भाग्य प्राप्त हुआ तब उस पर उपर्युक्त दोनों आघातोंने अपना प्रभाव दिखला दिया । यह कहा जा चुका है कि, कई अनुदार मुसलमान अकबरकी प्रवृत्तियोंसे नाराज थे। इस लिए उन्होंने अकबरके बड़े पुत्र सलीमको अकबरके विरुद्ध उभारा । यहाँ तक कि उसको अकबरकी गद्दी छीन लेनेके लिए उत्तेजित किया। सलीम दुश्चरित्र था । उसको किसी धर्म पर श्रद्धा न थी, तो भी संकीर्ण हृदयी मुसलमानोंने इन बातोंकी परवाह न कर उसे खूब उभारा । दूसरी तरफ सन् १९८९ ईस्वीमें अकबर जब काश्मीरकी सैर करने गया था उस समय उसका प्रिय अनुचर ‘फतहउल्ला'-जो एक अच्छा पंडित था और संस्कृत ग्रंथोका फारसीमें अनुवाद करता था--मर गया। काश्मीरके सीमाप्रान्तमें, अबुल्फेतहका जिसने अकबरके धर्मको स्वीकार किया था,
१-फतहउल्ला अबुल.फतहका लड़का था वह खुशरोका दोस्त था इसलिए जहाँगीरने उसको मरवाडाला था । देखो आईन-इ-अकबरीके प्रथम भागका अंग्रेजी अनुवाद, पृ० ४२५.
. २-यह गीलानके मुल्ला · अब्दुर्रज्जाक का लड़का था। उसका पूरा नाम 'हकीम मसीउद्दीन अबुलफतह 'था। अरफी नामक कविने इसकी स्तुतिमें जो कविता लिखी है उसमें इसका नाम मीर अबुल्फतह लिखा है उसका बाप गीलानके सदरकी जगह बहुत दिनतक रहा था। जब सन्
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