Book Title: Surishwar aur Samrat Akbar
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharm Laxmi Mandir Agra

View full book text
Previous | Next

Page 401
________________ ३५८ सूरीश्वर और सम्राट्। फैजीको अकबर सन् १९६८ के पहले जानता भी नहीं था उसी फैजी पर अकबरका इतना शोक !-इतना दुःख !-इतना विलाप ! आश्चर्यकी बात है। जन्मान्तरोंके संस्कार कहाँसे कहाँ मेल मिला देते हैं ? फैजीकी मृत्युसे अकबरके हृदयमें असाधारण आघात लगा। वह यही सोचता था कि, एक ओर कुटुंब कलहकी ज्वाला जल रही है और दूसरी तरफ़ मेरे अनुयायी इस तरह एक एक करके नष्ट होते जा रहे हैं। न जाने मेरा क्या होनहार है ? अकबर अपने सिरपर आनेवाली विपत्तियोंको सहन करता हुआ रहने लगा। उसे जब जब अपने गृहकलह और स्नेहियोंकी मृत्यु याद आती तब तब वह अधीर हो उठता; उसका हृदय व्याकुल हो जाता। परन्तु वह अपने मनको बड़ी कठिनतासे समझाता और किसी काममें लगा देता। उस समय अकबरको आश्वासन देनेवाला सिर्फ एक अबुल्फज़लही रह गया था। __ यह आत ऊपर कही जा चुकी है कि, सलीम पूर्णरूपसे विद्रोही बनकर अलाहाबाद पर काबिज हो गया था और खुल्लमखुल्ला अकबरसे शत्रुता करने लगा था । पितासे तो सलीम विद्रोह करता ही था; परन्तु अबुल्फज़ल पर वह बहुत ही ज्यादा खफ़ा था । वह समझता था कि, जब तक सम्राटो पास अबुल्फजल रहेगा, तब तक सम्राटके सामने दूसरेकी एक भी न चलेगी। इसी लिए वह अबुल्फज़लको मारडालनेका प्रयत्न करता था। जिस समयकी हम बात कह रहे हैं उस समय अबुल्फ़ज़ल दक्षिणमें शान्ति स्थापन करनेके लिए गया हुआ था। इधर सलीमने बड़े जोरोंके साथ विद्रोहका झंडा खड़ा किया । अकबर घबराया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474