Book Title: Surishwar aur Samrat Akbar
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharm Laxmi Mandir Agra

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Page 402
________________ सम्राट्का शेषजीवन। उसने अबुल्फजलको लिखा कि,-वहाँका कार्य अपने पुत्रको सौंपकर तुम तत्काल ही यहाँ चले आओ। अबुल्फ़ज़ल थोडीसी सेना लेकर आगरेकी तरफ रवाना हुआ । रास्ते से उसने, न मालूम क्या सोचकर, सिर्फ थोड़ेसे सवार अपने साथ रक्खे और बाकी सेनाको वापिस भेज दिया । उन्हीं थोड़े सवारों के साथ वह आगरेकी ओर आगे बढ़ा। उधर आगरेमें रहनेवाले सलीमके पक्षके लोगोंने सलीमको ये समाचार भेजे । सलीमने अबुल्फ़ज़लको मारनेके लिए वीरसिंह नामके एक डाकूको राजी किया । यह डाकू किसी खास स्थानमें बहुत दिनोंसे उपद्रव करता था और आने जानेवाले लोगोंको लूट लेता था। उसके साथ बहुतसे आदमी थे । अबुल्फ़ज़ल जब 'राइबरार ' पहुँचा तब उसे एक फ़कीरने कहा,---" कल तुम्हें वीरसिंह डाकू मार डालेगा ! " अबुल्फ़जलने उत्तर दिया:--- "मौतसे डरना व्यर्थ है। इससे बचनेका सामर्थ्य किसमें है ?" १-यह ‘सराइ बरार' गवालियरसे १२ माइल दर एक अंतरी गाँव है उससे ३ माइल है । अंतरीम अब भी अबुल्फ़जलकी कब्र मौजूद है । २-इसका पूरा नाम वीरसिंहबुंदेला था । कुछ लेखकोंने इसका नाम नरसिंहदेव भी लिखा है । इसके पिताका नाम मधुकर बुंदेला था । और इसके बड़े भाईका नाम था रामचंद्र । सलीमका इसपर बहुत प्रेम था । सलीमने अबुल्फ़ज़लके खूनके बदलेमें इसको ओरछा इनाममें दिया था। इसने मथुरामें कई मंदिर बनवाये थे। उनमें तेतीस लाख रुपये व्यय किये थे । उन मंदिरोंको औरंगजेबने हि. सं. १०८० में नष्ट किया था। सलीमने इस लुटेरेको तीन हज़ारी बनाया था। विशेषके लिए देखो,विन्सेंट स्मिथ कृत अकबर (अंग्रेजी ) पृ. ३०५-३०७. तथा आईन. इ-अकबरीके प्रथम भागके अंग्रेजी अनुवादका पृ. ४८८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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