Book Title: Surishwar aur Samrat Akbar
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharm Laxmi Mandir Agra

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Page 423
________________ सूरीश्वर और सम्राट्। उत्तम काम करनेकी सुमति दे। कारण,-मनुष्यजातिमेंसे एकको राजाके दर्जेतक ऊँचा चढ़ाने और उसे सर्दारकी पोशाक पहनानेमें पूरी बुद्धिमानी यह है कि वह ( राजा ) यदि सामान्य कृपा और अत्यंत दया को-जो परमेश्वरकी सम्पूर्ण दयाका प्रकाश है-अपने सामने रखकर सबसे मित्रता न कर सके, तो कमसे कम सबके साथ सुळेह-मेलकी नींव डाले और पूज्य व्यक्तिके (परमेश्वरके) सभी बंदोंके साथ महरबानी, मुहब्बत और दया करे तथा ईश्वरकी पैदा की हुई सब चीज़ों ( सब प्राणियों) को-जो महान् परमेश्वरकी सृष्टिके फल हैं-मदद करनेका ख्याल रक्खे एवं उनके हेतुओंको सफल करनेमें और उनके रीति-रिवाजोंको अमल में लाने के लिए मदद करे कि जिससे बलवान् गरीबपर जुल्म न कर सके और हरेक मनुष्य प्रसन्न और सुखी हो। इससे, योगाभ्यास करनेवालोंमें श्रेष्ठ हीरविजयमूरि 'सेवडी' और उनके धर्मके माननेवालोंकी-जिन्होंने हमारे दर्बारमें हाज़िर होनेकी इज्जत पाई है और जो हमारे दर्वारके सच्चे हितेच्छु हैं-योगाभ्यासकी सचाई, वृद्धि और ईश्वरकी शोधपर नजर रखकर हुक्म हुआ कि, उस शहरके ( उस तरफ़के ) रहनेवालों से कोई भी इनको हरकत ( कष्ट ) न पहुँचावे और इनके मंदिरों तथा उपाश्रयोंमें भी कोई न उतरे । इसी तरह इनका कोई तिरस्कार भी न करे । यदि उनमेंसे ( मंदिरों या उपाश्रयों मेंले ) कुछ गिर गया या उजड़ गया १ श्वेतांबर जैनसाधुओंके लिए संस्कृतमें 'श्वेतपट' शब्द है । उसीका अपभ्रंश भाषामें · सेवड' रूप होता है । वही रूप विशेष बिगड़कर 'सेवड़ा' हुआ है। सेवड़ा' शब्दका उपयोग दो तरहसे होता है । जैनोंके लिए और जैनसाधुओंके लिए । अब भी मुसलमान आदि कई लोग प्रायः जैनसाधुओंको सेवदा ही कहते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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