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सम्राट्का शेष जीवन।
रायरायानपत्रदासको फोन देकर रवाना किया और उन्हें कह दिया कि,-" वीरसिंहका मस्तक मेरे सामने उपस्थित करो ।" ____ मुगलसेनाने जाकर वीरसिंहको घेर लिया । यद्यपि अकबरकी आज्ञाके अनुसार कोई वीरसिंहका मस्तक न लेजा सका तथापि उन लोगोंने उसका सर्वस्व जरूर लूट लिया । वीरसिंह ज़ख्मी होकर कहीं भाग गया।
कौन न कहेगा कि अकबर तब आत्मीय-पुरुष-विहीन हो गया था ? यद्यपि उसके पास लाखों आज्ञापालक मनुष्य थे और शस्त्रास्त्र एवं धन सम्पत्तिसे उसका खजाना पूर्ण था तथापि उन आत्मीयपुरुषोंका उसके वहाँ अभाव था जिनकी सहायतासे उसने विशाल साम्राज्य स्थापित किया था और कठिन समयमें जिनसे सहायता मिलती थी । अखूट धन दौलत और विस्तृत अधिकारके होते हुए भी अकबरकी अवनतिके चिह्न दिखाई देने लगे। या यह कहिए कि उसकी अवनतिका पर्दा उठकर, प्रथम अंक प्रारंभ हो गया था ।
१ यह विक्रमादित्यके नामसे प्रसिद्ध था । जातिका खत्री था। अकबरके राज्यके प्रारंभमें फीलखानेका मुशरफ ( Head Clerk ) था । ' रायरायान' इसकी पदवी थी। ई. सन् १५६८ में चित्तौड़के आक्रमणमें वह प्रसिद्ध हुआ था । ई. सन् १५७९ में वह और मीर अधम दोनों बंगालके संयुक्त दीवान बनाये गये थे। सन् १६०१ ई. में उसे तीन हज़ारीका पद मिला था । सन् १६०२ में वह वापिस दर्बारमें बुलाया गया और सन् १६०४ ई. में वह पाँच हजारी बनाया गया। उस समय उसे 'राजा विक्रमादित्य' की पदवी मिली । जहाँगीर गद्दी पर बैठा उसके बाद वह 'मीर आतश' बनाया गया और यह हुक्म दिया गया कि वह पचास हजार गोलन्दाज और तीन हज़ार तोपगाड़ियाँ हर समय तैयार रक्खे । उसके निर्वाह के लिए पन्द्रह जिले अलग रक्खे गये । विशेषके लिए देखो 'आइन-ई-अकबरी' के प्रथम भागका अंग्रेजी अनुवाद. १० ४६९-४४०.
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