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सूरीश्वर और सम्राट् । जटा बढ़ा, फटाटा गाऊन पहिन श्रोताओंके साथ, रिवाजकी तरह, ऊपरि विवाद करना नहीं।
अकबरके विचारोंमेंसे ऊपर दिये हुए कुछ उद्धरणोंसे सहृदय पाठक यह कहे विना न रहेंगे कि, वह जितना राजकीय विषयोंका गहरा ज्ञान रखता था उतना ही सामाजिक, धार्मिक और नैतिक विषयों का भी रखता था ? वास्तवमें अकबरके ऐसे सद्गुण उसके पूर्वजन्मके शुम कर्मोंका ही फल है । अन्यथा करोड़ो मनुष्योंपर हुकू. मत करनेवाले यवनकुलोत्पन्न बादशाहमें ऐसे विचारोका निवास होना, बहुत ही कठिन है । अकबरको संयोग मी ऐसे ही मिलते गये कि जो उसके विचारोंको विशेष दृढ बनानेवाले-पुष्ट करनेवाले थे। उसके दारके प्रधान पुरुषोंकी संगति भी उसके लिए विशेष काभकारी हुई थी। उनमें भी अबुल्फ़ज़लका प्रभाव तो उस पर बहुत ही ज्यादा था ।
अपने द्वितीय नायक सम्राट्की उन्नतिका सूर्य ठीक मध्याह्न पर आया था । उसकी इच्छित सारी मनोकामनाएं पूर्ण हुई थीं। उसका साम्राज्य हिन्दुकुश पर्वतसे ब्रह्मपुत्रा तक और हिमालयसे दक्षिण प्रदेश तक फैल गया था । सर्वत्र शान्ति फैल गई। विदेशी लोगोंके आक्रमणका भय भी न रहा । संक्षेपमें कहें तो अकबरने भारतवर्ष के गौरवको पीछा जीवित कर दिया । उसने अनेक प्रकारके प्रयत्नोंद्वारा
१ अकबरके विशेष विचार जाननेके लिए देखो, आईन-इ-अकबरीके तीसरे भागका, कर्नलजेरिटकृत, अंग्रेजी अनुवाद । पृ० ३८०-४०० ।
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