Book Title: Surishwar aur Samrat Akbar
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharm Laxmi Mandir Agra

View full book text
Previous | Next

Page 398
________________ सम्राट्का शेषजीवन । पंजाबका शासनकर्ता था-इहलोकलीला समाप्तकर चला गया और राजा भगवानदास भी अपने घर आकर मर गया । इस प्रकार ई. सन् १९८९ में एक एक करके अकबरके अनुचरोंकी मृत्यु हुई । इससे उसको बड़ा ही दुःख हुआ । स्नेहियोंकी मृत्युसे भी घरका झगड़ा अकवरके लिए विशेष दुःखदाई था। दूसरोंकी शत्रुता हरतरहसे मिटाई जा सकती है परन्तु अपने पुत्रकी शत्रुताको मिटाने में उसने असाधारण विपत्तियाँ झेली । तो भी परिणाम कुछ नहीं हुआ। सलीमने अकबरके साथ यहाँ तक शत्रुता प्रकट की कि, उसने खुले तौर पर अलाहाबाद पर अधिकार कर लिया, और आगरे की गद्दी लेने के लिए प्रयत्न प्रारंभ किया । इतना ही नहीं, उसने अपने पिताको विशेष क्रुद्ध करनेके लिए अपने नामके सिक्के भी जारी कर दिये । सम्राट् यदि चाहते तो सलीमको उसकी इस ढिठाईका यथेष्ट दंड दे सकते थे; परन्तु वे वात्सल्य भावसे प्रेरित होकर अन्त समय तक चुप ही रहे । पुत्रके साथ युद्ध करनेको तैयार नहीं हुए । नियम पालनेमें कठिनाइयों उठानी पड़तों थी, परन्तु उन्हें सहकर भी अपने नियम पालता था । ___ जो लोग कहते है कि नौकर मालिकके वफादार तभी हो सकते हैं जब वे मालिक के विचार, व्यवहार और धर्मके अनुसार चलते हैं। उन्हें टोडरमलके जीवनपर ध्यान देना चाहिए । उसका जीवन बतायगा कि सच्चा वफादार वही नौकर होता है जो अपने धर्ममें पूरा वफादार होता है । अबुल फजल उसके विषयमें कहता है कि, यदि वह अपनी ही बात का अभिमान रखने और दूसरोंपर तिरस्कार करनेवाला न होता तो वह एक बहुत वड़ा 'महात्मा' गिना जाता । अन्तमें सन् १५८९ ईस्वी १० नवम्बरके दिन मर गया । देखो आईन-इ-अकबरीके प्रथम भागका अंग्रेजी अनुवाद । पृ० ३२ तथा दरवीरे अकबरीका पृ० ५१९-५५४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474