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सम्राका शेषजीवन |
यह कहा जा सकता है कि, अकबरके स्त्रियाँ बहुत थोड़ी थीं । कई उदाहरणों से यह बात सिद्ध होती है । कहा जाता है कि राजा मानसिंहके १५०० स्त्रियाँ थीं। उनमेंसे ६० तो उसके साथ ही सती हुई थीं । अकबर के एक दूसरे मनसबदारके १२०० स्त्रियाँ थीं । इतना ही क्यों, हुमायूँ और जहाँगीरके भी अकबरसे विशेष स्त्रियाँ थीं।
आधुनिक लेखकोंने, मालूम होता है कि, अकबरकी स्त्रियों के विषयमें एक दूसरी बातका विशेष रूपसे ऊहापोह किया है । वह यह है कि अकबरकी स्त्रियोंमें कोई ईसाई स्त्रि भी थी या नहीं ? इस विषय में सबसे सेंट झेवियर्स कॉलेजके फादर एच. होस्टेन, स्टेट्समेन द्वारा सन् १९१६ में यह कहनेको आगे आये थे कि, " अकबर के अन्तःपुर में एक ईसाई स्त्री भी थी । " इसके बाद अनेक इतिहासका - रोंने इस विषय में ऊहापोह किया है, मगर अबतक यह निश्चय नहीं हुआ कि, अकबरकी कौनसी स्त्री ईसाई थी ? अस्तु ।
दूसरे मुसलमान बादशाहोंकी अपेक्षा ही नहीं बल्के अनेक हिन्दू राजाओं की अपेक्षा भी अकबरने विशेष ख्याति पाई थी । इसका कारण उसके गुण और उसकी कार्यदक्षता ही है । प्रजाका प्यारा बनना कुछ कम चतुराई नहीं है । यह बात तो निर्विवाद है कि, ख्याति और सम्मान प्राप्त करनेकी इच्छा हरेकको रहती है । मगर कैसे आचरणोंसे यह इच्छा पूरी होती है ? इसका भली प्रकारसे जबतक ज्ञान नहीं होता तबतक यह इच्छा अपूर्ण ही रहती है । इतना ही नहीं कई बार तो इसका परिणाम उल्टा होता है । वर्तमान समय में भी भारत में अनेक वॉइसराय आये मगर लोकप्रिय होनेका सम्मान तो केवल लॉर्ड रीपन और लॉर्ड हार्डिजको ही मिला । दूसरे भी लोकप्रिय होनेकी आशा तो साथमें लाये थे मगर उनकी आशा पूर्ण न
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