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सूरीश्वर और सम्राट् । राज्यव्यवस्थाओंमें अन्तःपुर ( जनानखाना ) प्रायः क्लेशका कारण हुआ करता है । अकबर इस बातको भली प्रकार जानता था। इसीलिए वह अपने अन्तःपुरकी व्यवस्थापर विशेष ध्यान रखता था। उसने अन्तःपुरकी स्त्रियों के दर्जे बनाये थे और उनको न्यूनाधिक मासिक खर्च-जितना जिसके लिए नियत किया गया था-मिला करता था । अबुलफज़लके कथनानुसार पहले दर्नेकी स्त्रियोंको १०२८ से १६१० रुपये तक मासिक खर्चा मिलता था । जनानखानेके मुख्य नौकरोंको २०) से ५१) रु. तक और साधारण नौकरोंको २) से ४०) रु. तक मासिक वेतन मिलता था। (ध्यानमें रखना चाहिए कि अकबरके समयका रुपया ५५ सैंटके बराबर था) स्त्रियोंमेंसे किसीको कुछ जरूरत होती तो उसे खजानचीसे अर्ज करनी पड़ती थी। अन्तःपुरके अन्दरके हिस्सेकी चौकी स्त्रियाँ करती थीं। बाहरके मागमें नाजिर, दर्बान और फ़ौजी सिपाही अपने अपने नियत स्थानोंपर पहरा देते थे। अबुल्फ जल लिखता है कि, ई. सन् १९९५ वे में अकबरको अपने परिवारके खानगी खर्च, ७७। (सवासतहत्तर ) लाखसे भी अधिक रुपये देने पड़े थे।
कई लेखकोंका मत है कि, अकबरके मुख्य दस स्त्रियाँ थीं । उनमें से तीन हिन्दू थीं और शेष थीं मुसलमान ।
मि. ई. बी. हेवेलका कथन है कि, उसके बहुतसी स्त्रियाँ थीं। वह तो यहाँ तक लिखा है कि,-" मुगलोंकी दन्तकथाओंके अनुसार बादशाह यदि किसी भी विवाहित स्त्रीपर मुग्ध होजाता था तो उसके पतिको मजबूरन् तलाक देकर, अपनी स्त्री बादशाहके लिए, छोड़ देनी पड़ती थी।" हम नहीं कह सकते कि, इसमें सत्यांश कितना है ! चाहे कुछ भी था मगर उस समयकी दृष्टिसे,
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