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गेहूँ
जव
चावल
गेहूँ का आटा
सूरीश्वर और सम्राट् ।
१ रु. के
दूध
घी
सफेद शक्कर काली शकर
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२५ रतल
२९
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२
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१०
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इससे यह स्पष्ट है कि, युद्ध के पहले भी ये वस्तुएँ बहुत सस्ती न थीं । वृद्ध पुरुषोंका कथन है कि प्रति दिन जीवनोपयोगी वस्तुएँ महँगी ही होती जारही हैं ।
( लगभग )
ऐसा क्यों हुआ ? इस प्रश्नका उत्तर देनकी यह जगह नहीं है । इसके लिए बहुतसा समय और स्थान चाहिए । तो भी इतना तो कहना ही होगा कि, वस्तुओं की कीमतका आधार उसके निकास, बहुतायत और अच्छी फसलपर है। देशका माल जैसे जैसे बाहर जाने लगा वैसे ही वैसे सदैव काममें आनेवाले पदार्थ महँगे होने लगे, गरीबों और साधारण लोगों के हाथसे वे बिलकुल निकल गये । घृत, दही और दुग्ध तो बहुत ही ज्यादा महँगे हैं । इसका कारण पशुओंकी कमी है। घी, दूध और दही देनेवाले पशु एक ओर विदेश भेजे जाते हैं ओर दूसरी और देशहीमें व्यापारके नाम कतल किये जाते हैं। दोनों तरहसे पशुओंकी कमी होने लगी । यही कारण है कि, भारतवासियोंके जीवनभूत दुग्ध-दहीकी कमी हो गई है। अकबर यद्यपि मुसलमान था तथापि उसके समयमें पशुओंका इतना संहार नहीं होता था । इतना ही क्यों, उसने गाय, भैंस, बैल और भैंसेका मारना तो अपने राज्य में प्रायः बंद ही कर दिया था। इस बात का पहले उल्लेख
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