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सूरीश्वर और सम्राट्। था। भाई होते हुए भी उसने अकबरसे सत्ता छीनलेना चाहा था। जब अकबर स्वयं युद्ध करने को आया तब वह भाग गया। उसके बाद राजा मानसिंहने काबुल पर चढ़ाई की । हकीम पराजित हुआ। काबुल पर अकबरका अधिकार हुआ। हकीमकी दशा ऐसी खराब हो गई कि उसने आत्महत्या करलेनी चाही । अकबरको जब यह बात मालूम हुई तब उसने सोचा कि,- भाई दीनहीन होकर आत्महत्या करे और मैं ऐश्वर्यका उपभोग करूँ; यह सर्वथा अनुचित है। उसने अपने भाईके पास एक मनुष्य भेजा और उसे वापिस काबुलका शासनकर्ता बना दिया । अकबर ! धन्य है तेरी उदारता ! और धन्य है तेरा सौहार्द ! जो भाई तेरे साथ बार बार दुष्टताका वर्ताव करता था उसी पर तेरी इतनी अनुकम्पा ! _अकबरने मेडताका किला लेनेके लिए मिर्जाशरफुद्दीनहुसेन को भेजा था । ( ई. स. १५६२ ) वहाँका राजा मालदेव उसके साथ बडी वीरताके साथ लडा था, मगर पीछेसे अन्नजल समाप्त होजानेके कारण उसे शरफुद्दीनके शरणमें जाना पड़ा था। जिस मालवदेवने अकबरके साथ युद्ध किया था उसी मालवदेवको अपने
१-यह उमराव कुटुंबके ख्वाजा मुईनका पुत्र था । यह वह ख्वाजा मुईन है जो खाविंद महमूदका पुत्र था । खाविंद महमूद ख्वाजा कलानका दूसरा लड़का था । ख्वाजा कलन प्रसिद्ध महात्मा ख्वाजा नासोइद्दीन उबैदुल्लाह अहरारका बना लड़का था । इसीलिए मिर्जा शर• फुद्दीन हुसेन खास तरहसे अहरारी कहलाता था । विशेषके लिए आइन-ई. अकबरी प्रथम भागका अंग्रेजी अनुवाद, ब्लाक मॅन कृत पृष्ठ ३२३.
२-राजा मालदेव एक प्रभावशाली पुरुष था । बहरामखाँका वह कहर शत्र था। बहरामखाँ जब मक्का गया था तब वह गुजरातके रस्ते न जाकर बीकानेर अपने मित्र कल्याणमलके पास गया था । कारण-बीकानेरका मार्ग उस समय कल्याणमलके क़बजेमें था । ( देखो-आइन-ई-अकबरी
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