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सम्राट्का शेषजीवन । भी अपनी वीरतासे स्तंभित कर देने वाली बंदूक और धनुष चलाने में सुनिपुण और रणस्थलमें पीठ दिखानेकी अपेक्षा मर मिटनेको ज्यादा पसंद करनेवाली कालिंजरकी राजकन्या, तथा गोंडवाणाकी राजधानी चौरागढ़ ( यह इस समय जबलपुरके पास है) की रक्षिका महाराणी दुर्गावतीके समान वीर रमणियोंने अकबरको अपनी वीरताका जो परिचय दिया था उसको वह यावज्जीवन भूला न था । और क्यों, मानसिंह, टोडरमल, भगवानदास और बीरबलके समान महान योद्धाओं के नामोंको भी हम नहीं भूल सकते । इन्होंने अकबरकी सर्वत्र हुकूमत कायम करने असाधारण सहायता की थी। ये कौनसे मुगल सन्तान थे ? ये भी तो वीरप्रसू भारतमाता ही की सन्तान थे ? उनकी वीरताके लिए भी भारत माता ही गौरवान्विता हो सकती है। कईबार तो मनुष्य मनुष्यको खाजात थे। उनकी शकले ऐसी बिगड़ गई थी कि उन्हें देखकर डर लगता था । एकान्तमें यदि कोई अकेला आदमी मिलजाता था तो उसके नाककान काटकर लोग खाजाते थे।
यद्यपि देशमें ऐसी भयंकर स्थिति थी; परन्तु कार्यदक्ष हेमूकी सेनापर उसका कुछ भी प्रभाव न हुआ । इसका कारण उसका पुरुषार्थ था । उसके यहाँ जो हाथी घोड़े थे वे भी हमेशा घी शक्कर खाते थे । सिपाहियोंका तो कहना ही क्या है ?
अन्तमें प्रो० आजाद कहते हैं,-" हेमू बनिया था: परन्तु उसके पराक्रम गूंज रहे हैं । वह बड़ा ही साहसी और धीर था; अपने मालिकका योग्य नौकर था। वह बहुत प्रेमी था । लोगोंके दिल हमेशा खुश रखता था। अकबर उस समय बालक था। अगर वह योग्य आयुमें होता तो ऐसे आदमीको कभी अपने हाथसे न खोता। वह उसे अपने पास रखता और सन्तुष्ट करके उससे काम लेता । परिणाम यह होता कि, देश उन्नत बनता और राज्यकी नींव मजबूत होती ।
१-रानी दुर्गावती, यह मध्यभारतवर्षकी वीर रमणी थी। यह गोंडवाणा में-जो भट्टाके दक्षिणमें है-राज्य करती थी । विशेषके लिए देखो - आईन-इ. अकबरी' के प्रथम भागका अंग्रेजी अनुवाद । पृ० ३६७ ।
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