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सम्राट्का शेषजीवन ।
'लालीनलाली' नामक सोनेका सिका भी चलता था। इनके अलावा एक चौकोना सोनेका सिक्का चलता था । उसके मूल्यमें प्रायः परिवर्तन हुआ करता था।
ईस्वी सन् १९७५-७६ से अकवरने अपने सिक्कों में 'अल्लाहो अकबर' लिखवाया था।
मि. डब्ल्यु. एच. मोरलेंड. का कथन है कि,-" इस समय रुपयेका वजन १८० ग्रेन है। अकबरका सिक्का इससे वजनमें कुछ कम था; मगर वह खरी चाँदीका बना हुआ था ।
अकबरकी मुंहरों ( Soals ) के लिए कहा जाता है कि, वे भिन्न भिन्न प्रकारकी थीं। एकमें तो केवल उसीका नाम था। दूसरीमें उसके तैमूरतक पूर्वजोंके नाम थे ।
१ अकबरके समयके सिक्कोकी बातें जानने के लिए परिशिष्ट (ज) देखो।
२ मुहरे लगानेका रिवाज जैसे अब है वैसे ही पहले भी था । वे मुहर भिन्न २ प्रकारकी रहती थीं । अबुलफजलके कथनानुसार सम्राट अकबरकी मुहरें अनेक तरहकी थी । उममें एक ऐसी थी जिसको मौलाना मकसदने अकबरकी हुकूमतके प्रारंभहीमें खोदकर बनाया था । यह लोहेकी बनी हुई
और गोल थी । 'रीका' (पान गोल भागमें सीधी लाइन लिखनेको 'रीका' कहते हैं ) पद्धतिमें शाहन्शाहका और तैमूरसे लेकर अन्यान्य प्रसिद्ध पूर्वजों के नाम खुदे हुए थे । दसरी एक मुहर ऐसीही गोल थी। मगर उसमें ‘नस्तालिक' (जिसमें सभी लाइन गोल लिखी जाती हैं। पद्धतिका नाम था । इसमें केवल सम्राटहीका नाम था ।
तीसरी एक मुहर थी वह न्यायविभागक उपयोगमें आती थी । वह 'मेहराबी' (जिसका आकार छ: कोनेका लंवा तथा गोल होता है) के समान थी । उसके ऊपर बीचमें सन्नाटका नाम था और चारों तरफ निम्न लिखित आशयका लेख लिखा था,
" ईश्वरको प्रसन्न करने का साधन प्रामाणिकता है। जो सीधे रस्ते चलता है उसे भटकते मैंने कभी नहीं देखा।"
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