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सूरीश्वर और सम्राट् ।
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नहीं था। यद्यपि में सौंपा नहीं गया हूँ तथापि वास्तवमें तो मैं सूरिजीका शिष्य हो चूका हूँ। अतः मुझे उनकी सेवामें जाना ही चाहिए । इसी जानकारीके कारण, पिताका आग्रह होनेपर भी उसने ब्याह नहीं किया था।
जिस वक्त दस आदमियोंकी दीक्षा हो रही थी उस समय रामजी भी वहीं मौजूद था। उसका मन ऐसे अपूर्व प्रसंग पर दीक्षा लेनेके लिये तलमला रहा था । मगर करता क्या ? उसका पिता
और उसकी बहिन इसके सख्त विरोधी थे। रामनीने भानुविजयजीजिन्होंने रामजीके कहनेहीसे दीक्षा ली थी-नामक साधुकी ओर देखा और उसको इशारेसे समझाया कि, मुझे किसी न किसी तरहसे दीक्षा दो।
उस समय कुछ ऐसा प्रयत्न किया गया कि, उसी समय गोपालजी नामका एक श्रावक रामनीको रथमें बिठाकर पीपलोईx ले गया । उसके पीछे एक पंन्यास भी गया। उसने जाकर रामजीको दीक्षा दी । वहाँसे वे वडली गये।
दिक्षा लेनेवालेका मन यदि दृढ़ होता है तो हजारों विघ्न भी कुछ नहीं कर सकते हैं । यह बात निर्विवाद है । रामजीका मन दृढ था । दीक्षा लेनेकी उसके हृदयमें इच्छा थी तो दूर जाकर भी अन्तमें उसने दीक्षा ले ली। यद्यपि इस प्रकारकी दीक्षासे उसके बहिन भाइयोंने गड़बड़ मचाइ परन्तु पीछेसे उदयकरणके सम___x पीपलोई खंभातसे ६-७ माइल दूर है । वर्तमानमें भी उसको पीपलोई ही कहते हैं ।
वडलीको वर्तमानमें वडदला कहते हैं । अभी वहाँ कोई मंदिर नहीं है। मगर श्राववोंके थोडेसे घर अब भी वहाँ हैं। खंभातसे यह ९-१० माइल दूर है।
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