________________
૨૪
सूरीश्वर और सम्राट् ।
उपाध्यायके साथ भदुआ * नामक श्रावकका किसी कारण से विवाद हो गया । विवाद में भदुआने ऐसी ऐसी बातें उपाध्यायनीको कहीं कि, जिनका कहना श्रावकोंके लिए सर्वथा अनुचित था । उपाध्यायजीने यह बात सूरिजीको लिखी । सूरिजीको यह पढ़कर बहुत दुःख हुआ । उन्होंने सोचा कि, इसी तरह यदि गृहस्थ अपनी मर्यादाका त्याग करेंगे, तो परिणाम यह होगा कि, साधु और श्रावकों के बीच में एक गंभीर मर्यादा है, वह न रहेगी अतः इस अनुचित स्वाधीनता पर अंकुश रखना चाहिए ।
यह सोचकर उन्होंने अहमदबादस्थ साधुओंको एक पत्र इस अभिप्रायका लिखनेके लिये, सोमविजयजीको कहा कि, भदुआ श्रावकको संघ बहार निकालकर उसके यहाँ गोचरी जाना बंद कर दो।
जब पत्र रवाना किया जाने लगा तब विजयसेनसूरिने हीरविजयसूरि से प्रार्थनाकी कि, पत्र यदि अभी न भेजा जाय तो अच्छा हो; परन्तु सूरिजीने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया । पत्र भेज दिया । पत्र पाकर अहमदाबादमें साधुओंने भदुआको संघबाहर कर दिया और उसके घर गोचरी- पानी जाना छोड़ दिया । अहमदानादका संत्र इससे बहुत चिन्तित हुआ ।
इसमें तो किसीको शंका नहीं थी कि, भदुआने साधुओंके अपमानका महान् अपराध किया था । साधुओंने भदुआको दंड
१- भदुआ हीर विजयसूरिके भक्त श्रावकों में से एक था । मगर वह अमुक समय के लिए धर्मसागरजी के पक्षमें मिल गया था। जान पड़ता है कि, इसीलिए विमलह उपाध्याय के साथ कुछ विवाद हो गया होगा। भदुआ श्रावक संघ बहार निकाल दिया गया था | पं-दर्शन विजयजीने यह बात अपने बनाये हुए ' विजय. तिलकसूरिरास में भी लिखी है । ऐतिहासिक रास संग्रह ४ थे भागका २३ वा पृष्ठ देखो !
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org