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• सम्राटका शेषजीवन । परिणाम कभी अच्छा नहीं होता। यह बात यदि अकबर भली प्रकारसे जानता होता और उसपर पूर्ण रूपसे श्रद्धा रखता होता तो वह ऐसा कार्य कदापि न करता ।
अकबरमें एक खास गुण था । वह यह कि, वह अपना काम मीठा बनके निकालनेकाही प्रयत्न करता था। वह मानता था कि, अगर मीठी दवासे रोग मिटता हो तो कड़वी दवाका उपयोग नहीं करना चाहिए । इसी नीतिके द्वारा उसने अनेक राज्यों और अनेक वीरोंको अपने आधीन कर लिया था । अकबरकी यह प्रबल इच्छाथी कि, जो राज्य उसके बापके अधिकार से निकल गये थे उनको वह पुनः अपने अधिकारमें करले । मगर जब वह वस्तुस्थितिका विचार करता तब उसे जान पडता कि, भारत वीर पुरुषोंकी खानि है । सबसे विरोध करके अपना मनोरथ सफल करना असंभव है। इसी लिए उसने भेदनीतिका आश्रय लेकर भारतके वीरों में फूट डाली और उनमें से अनेक को अपने पक्षमें मिला लिया । अकबरको देश जीतने में और अन्यान्य कामोंमें मुख्यतया सहायता देनेवाले, राजा भगवानदास, राजा मानसिंह और राजा टोडरमल आदि कौन थे ? भारतहीके वीर । अकबरने भगवानदासकी बहिन, मानसिंहकी बुआ, के साथ व्याह कर उन्हें अपने पक्षमें मिलाया था। सलीम ( जहाँगीर ) इसी हिन्दु स्त्रीसे उत्पन्न हुआ था। कहा जाता है कि, अकबरने तीन हिन्दु राजकन्याओंके साथ ब्याह किये थे। उनमें बीकानेरकी राजकन्या भी थी। किसी न किसी तरहसे सारे राजा अकबरकी नीतिके शिकार हुए थे और उसके आधीन बने थे; केवल मेवाड़के महाराणा प्रतापसिंह ही उसकी जालमें न फंसे थे। उन्होंने अकबरकी शाम, दाम, दंड और भेद सभी नीतियोंको पैरोंतले रौंदकर
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