________________
सम्राट्का शेषजीवन । समान समझते थे। सभीको विश्वास था कि, उसके आशीर्वादसे कठिन पीडा मिटती है, सन्तानकी प्राप्ति होती है और मनोवांछित फल मिलता है। इसी लिए झुंडके झुंड लोग हमेशा उसके पास आते थे और उससे आशीर्वाद चाहते थे।
इतना होने पर भी एक बात ऐसी है कि, जिससे आश्चर्य होता है । वह यह है,-एक तरफ़से कहा जाता है कि, अकबरका उपर्युक्त प्रकारसे माहात्म्य फैला था और दूसरी तरफ़से हम देखते हैं कि, उसका माहात्म्य और उसका धर्म उसके साथ ही विलीन हो गये । यह कैसे हुआ ? इसके संबंधमें विद्वान् अनेक प्रकारके तर्क करते हैं । कई कहते हैं कि, अकबरकी महिमा बढ़ानेवाले और उसके धर्मका गुणगान करनेवाले अबुलफजल और फैजी जैसे लोग अकबरके पहलेही संसार छोड़कर चले गये थे । इसलिए उसके धर्मशकटको चलानेवाला कोई भी न रहा । इसलिए उसका धर्म लुप्त हो गया। कई कहते हैं कि, अकबरके दीने इलाही धर्मको किसीने सच्चे दिलसे स्वीकार नहीं किया था, इसीलिए वह अकबरके साथही समाप्त हो गया था। कई यह भी कहते हैं कि, धर्मस्थापकमें जो अचल श्रद्धा होनी चाहिए वह अकबरमें नहीं थी। जब किसी धर्मके संस्थापकहीमें पूर्ण श्रद्धा नहीं होती है तब उसके अनुयायियोंमें तो होही कैसे सकती है ? चाहे किसी कारणसे हो मगर अकबरकी चमकारोंसे संबंध रखनेवाली महिमा और उसका धर्म उसके बाद न रहे।
अकबरने उसके धर्मानुयायियोंमें एक बात और भी चलाई थी। वह थी अभिवादन संबंधिनी । इस समय दो हिन्दु जब मिलते है तब वे 'जुहारु ' या ' जयश्रीकृष्ण आदि बोलते हैं। दो मुसलमान जब मिलते है तब एक कहता है 'सलामालेकम । दूसरा उत्तर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org