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निर्वाण ।
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समयपर हमारे लिए आपका हृदय दुखा होगा। उसके लिए हम आपसे क्षमा माँगते हैं । प्रभो ! आप तो गुणके सागर हैं। आपने जो कुछ किया होगा वह हमारे भलेके लिए ही किया होगा । मगर हमने उसे न समझ कर आपके विपरीत कुछ विचार किया होगा । हमारे उस अपराधको क्षमा कीजिए । गुरुदेव ! विशेष क्या कहें ! हम अज्ञानी और अविवेकी हैं । अत: मन, वचन और कायासे आपका जो कुछ अविनय, अविवेक और अप्सातना हुए हों उनके लिए हमें क्षमा करें । "
सूरिजीने कहा:-"मुनियरो ! तुम्हारा कथन सत्य है; परन्तु मुझे भी तुमसे क्षमा माँगनी ही चाहिए । यह मेरा आचार है । साथमें रहनेसे कई बार कुछ कहना भी पड़ा है और उससे सामनेवालेका दिल दुखता है। यह स्वाभाविक है । इसलिए मैं तुमसे क्षमा माँगता हूँ।"
___ इस प्रकार समस्त जीवोंसे क्षमा माँगनेके बाद सूरिजीने पापकी आलोचना की और अरिहंत, सिद्ध, साधु, और धर्म इन चार शरणोंका आश्रय लिया।
सरिनी समस्त बातोंकी तरफसे अपने चित्तको हटा कर अपने जीवनमें किये हुए शुमकार्यो-विनय, वैयावच्च, गुरुभक्ति, उपदेश, तीर्थयात्रा आदिकी-अनुमोदना करने लगे । ढंढण, हठप्रहारी, अर. णिक, सनत्कुमार, खंधककुमार, कूरगडु, भरत, बाहुबली, बलिभद्र, अभयकुमार, शालिभद्र, मेवकुमार, और धन्ना आदि पूर्व ऋषियोंकी तपस्या और उनके कष्ट सहन करनेकी शक्तिका स्मरण करने लगे। तत्पश्चात् नवकार मंत्रका ध्यानकर उन्होंने दश प्रकारकी आरा. धना की।
___ कुछ देरके लिए सूरिनी मौन रहे। उनके चहरेसे मालूम
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