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जीवनकी सार्थकता । सूरिजीके समयहीमें अमरविजयनी * नामके एक साधु हुए हैं। वे त्यागी, वैरागी और महान तपस्वी थे। निर्दोष आहार लेने की ओर तो उनका इतना ज्यादा ध्यान था कि, कई बार उनको निर्दोष आहार न मिलने के कारण तीन तीन चार चार दिन तक उपवास करने पड़ते थे । हीरविजयमूरि उनकी त्यागवृत्ति पर मुग्ध थे। एक बार जब सब साधु आहारपानी ले रहे थे उस समय सूरिजीने उनसे कहा:-" महाराज, आज तो आप मुझे अपने हाथसे आहार दीजिए।" कितनी लघुता ! गुणीजनोंके प्रति कितना अनुराग! इतनी उच्चस्थितिमें पहुंचने पर भी कितनी निरभिमानता! अमरविनयजीन मूरिनीके पात्रमें आहार दिया । एक महान् पवित्र-तपस्वी महापुरुषके हाथसे आहार लेनमें सूरीश्वरजीको जो आनंद हुआ वह वास्तव, अवर्णनीय है । सूरिजीने उस दिनको पवित्र मानकर अपनी गिनती के पवित्र दिनोंमें जोड़ा और अपने आपको भी उस दिन उन्होंने धन्य माना।
सूरिनीमें जैसी गुण-ग्राहकता थी वैसो ही लघुता भी थी। हम इस बातको भली प्रकार जानते हैं कि, अकबरने जीवदयासे संबंध रखनेवाले और इसी तरहके जो काम किये थे उन सबका श्रेय हारविजयसूरिहीको है। यद्यपि विजयसेनसूरि, शान्तिचन्द्रनी भानुचंद्रनी और सिद्धिचंद्रनीने बादशाहके पास रहकर कई काम करवाये थे; तथापि प्रताप तो सूरिजीहीका था । कारण बादशाहके पास रहकर दीर्घकालतक उन्होंने जो बीज बोये थे-बीज ही नहीं उसके अंकुर भी फुपये थे-उन्हींके वे फल थे। इसलिए उनका सारा यश सूरिजीहीको है । इतना होनेपर भी सूरिनी यही समझते
* पृ० २१३ के फुटनोटमें पं० कमलविजयजीके बारेमें कहा गया है। अमरविजयजी उन्हींक एक थे।
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