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शिष्य-परिवार। उनमें प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित कराई । उनकी दुकान गोआ बंदरमें है। उस पर स्वर्णका कलश सुशोभित होता है। उनकी बात किसीने नहीं टाली। फिरंगियोंके स्वामीने भी उनके सामने सिर झुकाया।"
हीरविजयमूरिके श्रावक ऐसे ही उदार और शासनप्रेमी थे। इसी तरह राजनगर में बच्छराज, नाना वीपु, जौहरी कुँअरजी, शाह मूलो, पूँजो बंगाणी और दोषी पनजी आदि थे । वीसलनगर (वीसनगर ) में शाह वाघो, दोशी गला, मेघा, वीरपाल, वीजा
और जिनदास आदि थे। सीरोहीमें आसपाल, सचवीर, तेजा, हरखा, म्हेता पूँजो और तेजपाल आदि थे । वैराटमें संघवी भारमल और इन्द्रराज* आदि थे । पीपाड़में हेमराज, तालो पुष्करणो आदि थे। अलवरमें शाह भैरव था। जेसलमेरमें मांडण ___ * हीरविजयसूरि जब अकबरके पाससे रवाना होकर गुजरातमें आते थे तब पीपाड़ नगरमें सूरिजीकी वंदना करनेके लिए, वैराटके संघवी भारमलका पुत्र इन्द्रराज आया था। उसने सूरिजीसे अपने नगरमें चलनेकी सामह विनती की थी। मगर सूरिजीको शीघ्र ही सीरोही जाना था इसलिए स्वयं न जाकर उन्होंने कल्याणविजयजी उपाध्यायको भेज दिया । इन्द्रराजने चालीस हजार रुपये खर्च कर बड़ी धामधूमके साथ कल्याणविजयजीसे प्रतिष्ठा कराई थी।
x भैरव हुमायुका मानीता मंत्री था । कहा जाता है कि, उसने अपने पुरुषार्थसे नौलाख बंदियों को छुडवाया था। बंदियोंसे यहाँ अभिप्राय कैदियोंसे नहीं है। युद्धमें जो लोग पकड़े जाते थे वे बंदी कहलाते थे। उन बंदियोंको मुसलमान बादशाह गुलामकी तरह खुरासान या दूसरे देशोंमें बेच देते थे। ऐसे नौलाख बंदियोंको भैरवने छुड़ाकर अभयदान दिया था। कवि ऋषभदासने 'हीरविजयसूरिरास' में उसका उल्लेख किया है । उस घटनाका संक्षिप्त सार यह है,
" हुमायूने जब सोरठ पर चढ़ाई की तब उसने नौलाख मनुष्योंको बंदी बनाया । उसने उन लोगोंको मुकीमके सिपुर्द किया और उन्हें खुरासानमें
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