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पूरीश्वर और समाद। शान्तिचंद्रजीसे कही । तत्पश्चात् उन्होंने भानुचंद्रजीको बुलाया। उन्हें भी सारी बातें कही गई । उन दोनोंने जाकर वे बातें अबुल्फजलसे कहीं। उनकी सलाहसे अमीपाल दोशी बादशाहके पास गया
और नजराना करके खड़ा रहा । बादशाहने सरिजीके कुशल समाचार पूछे । शेख अबुल्फ़ज़लने बादशाहसे कहा:-" गुजरातमें हीरविजयसूरिके जो शिष्य हैं उन्हें बहुत तकलीफ हो रही है, इसलिए उनको तकलीफसे छुड़ानेका कोई प्रबंध करना चाहिए।" फिर उसने गुजरातकी सारी घटना सुनाई । सुनकर बादशाहने अहमदामादके सुबेदार मिर्जाखान को पत्र लिखा और उसमें लिखा कि, जो हीरविजयसूरिके शिष्योंको कष्ट पहुँचाते हों उन्हें तत्काल ही दंड दो।
पत्र अहमदाबादके श्रावकोंके पास आया । उन्होंने वीपुशाहको यह पत्र ले कर खानसाहेबके पास जानेके लिए कहा। उसने सलाह दी कि,-" यथासाध्य प्रयत्न करके आपसमें झगड़ा मिटा लेना ही अच्छा है। राज्याधिकारीयोंसे दूर रहने में ही अपना भला है । कल्याणरायके पास विट्ठल नामका कार्यकर्ता है। वह बहुत ही बदमाश और खटपटी है उसका चलेगा तब तक वह हमें दंड दिलाये विना नहीं रहेगा।"
यह बात लोगोंको ठीक न लगी। जीवा और सामल नामके दो नागोरी श्रावकोंने कहा कि, " हम लोग मिर्जाखानसे मिलने और बादशाहका पत्र उसे देने जानेको तैयार हैं । मगर हमें अपना पक्ष समर्थनके लिए प्रमाण भी जुटा रखने चाहिएं। इसके लिए हमारी यह सलाह है कि, खंभातमें जिन लोगोंके सिर मुंडवाये गये हैं, वे यहाँ बुला लिये जायें।
खंभातसे अन्याय-दंडित लोग बुलाये गये । जब वे आ गये
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