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शिष्य-परिवार।
२३१ ये सारी बातें हीरविजयसूरिजीको लिखी गई । सूरिजी उस समय गुजरातसे बहुत दूर थे । वे सहसा न तो गुजरातमें ही पहुँच सकते थे और न उनके पत्रहीसे यह विग्रह शान्त हो सकता था। क्योंकि विग्रहकर्ता उनके अनुयायी नहीं थे, दूसरे थे । इसलिए सूरिजीके लिए यह बात बड़ी विचारणीय हो गई थी कि, विग्रह कैसे शान्त किया जाय ? उनको रह रह कर यह भी खयाल आ रहा था कि यदि इस समय उचित प्रबंध न होगा तो भविष्यमें अन्य भी इस तरहके हमले करते रहेंगे । इसलिए कोई ऐसा दृढ उपाय करना चाहिए कि, जिससे सदाके लिए शान्ति हो जाय । फिर कोई हमला करनेका साहस न करे ।
उसका एक ही उपाय उन्हें सूझा और वह यह कि, बादशाहको कहलाकर उससे कोई प्रबंध करवाना। सूरिजी उस समय अभिरामाबादमें थे। ... वे अभिरामाबादसे फतेहपुर आये। वहाँ उन्होंने जैनियोंकी एक सभा बुलाई । उसमें इस बात पर विचार किया गया कि-गुजरातके उपद्रवका क्या उपाय किया जाय ? उस सभामें यह प्रस्ताव पास किया गया कि, अमीपाल दोशी बाहशाहके पास भेजा जाय । वादशाह उस समय नीलाब * नदीके किनारे था । शान्तिचंद्रजी और भानुचंद्रजीभी वहीं थे। अमीपालने जाकर पहिले सारी बात
* नीलाब, सिंधु या अटक नदीका दूसरा नाम है । पंजाबकी दूसरी पाँच नदियोंकी अपेक्षा यह नदी बड़ा है । देखो. ' आईन-इ-अकबरी . ( एच. एस. जैरिट कृत अंग्रेजी अनुवाद ) के दूसरे भागका ३२५ वाँ पृष्ठ । वि० सं० १६४२ ( ई. स. १५८६ ) की यह बात है । अकबर उस समय अटक पर था। यह बात 'अकबरनामा ' से भी सिद्ध होती है । देखो अकबरनामा ' तीसरे भागके अंग्रजी अनुवादका पृष्ठ ७०९-५१५.
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