________________
૨૬
सूरीश्वर और सम्राट् ।
है । संसार में ऐसे पापी जीव भी देखे जाते हैं कि, जो दूसरे जीवोंका संहार करते हैं । परम दयालु परमेश्वर ऐसे पापी जीवको उत्पन्न करके क्या अपनी दयालुताको कलंकित करेगा ? किसीका जवान २० बरसका पुत्र मर जाता है, क्या यह कहोगे कि, उसका ईश्वरने हरण कर लिया ? अगर ईश्वरने वास्तव में उसको उठा लिया है तो फिर उसकी दयालुता किस कामकी है ?
अतएव चारों तरफ से विचार करने पर यह भली प्रकार से निश्चित हो जाता है कि, ईश्वरने न इस संसारको बनाया है न वह इसका संहार या पालन ही करता है ।
इस प्रकार ईश्वरके कर्ता हर्ता और पालनकर्ता के संबंध में उत्तर देनेके बाद उन्होंने ब्राह्मणोंके स्थापन किये हुए गुरुत्वके संबंध में इस प्रकार उत्तर दिया:-" बेशक ब्राह्मण गुरु हो सकते हैं । कहा भी है कि, ' वर्णानां ब्राह्मणो गुरुः ' ब्राह्मण समस्त वर्णोंका गुरु है । मगर वे ब्राह्मण शान्त, दान्त, जितेन्द्रिय, शास्त्रोंके पारगामी, ब्रह्मचर्यको पालनेवाले, अहिंसा के उपासक, कभी जूठ नहीं बोलनेवाले, बगेर पूछे किसीकी चीज न लेनेवाले और सन्तोषवृत्तिके धारक होने चाहिए । इन गुणोंके धारक ब्राह्मण ही गुरु होने या कहलाने का दावा कर सकते हैं। गुण बिना गुरु, गुरु नहीं कहला सकते हैं । इसी तरह शैवधर्मको धर्म मानने से किसीको इन्कार नहीं है अगर उसमें कल्या
का मार्ग हो और अहिंसाका पूर्ण रूपसे प्रतिपादन किया गया हो । धर्मकी परीक्षा चार तरहसे होती है। श्रुत (शास्त्र) शील (आचार) तप और दयासे । जिसमें इन चारों बातोंकी उत्कृष्टता हो, वही धर्म हरेकके मानने लायक है । वह धर्म चाहे किसी भी नामसे पहिचाना जाता हो । अमुक धर्महीको मानना चाहिए, अमुक गुरुहीको मानना
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org