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सूरीश्वर और सम्राट्। बर बादशाहसे उन्होंने जो कार्य कराये थे उन्हींसे विदित हो जाता है । . ३-भानुचंद्रजी उपाध्याय; ये भी उस समयके प्रभाविक पुरुषोंमेंसे एक थे । उनकी जन्मभूमि सिद्धपुर थी। उनके पिताका नाम रामजी और माताका रमादे था । उनका गृहस्थावस्थाका नाम भाणजी था । वे सात वर्षकी आयुमें स्कूल भेजे गये थे । दस वर्षकी आयुमें तो वे अच्छे होशियार हो गये थे । उनके बड़े भाईका नाम रंगजी था । सूरचंद्रजी* पंन्यासका सहवास होने पर उन दोनों भाइयोंने दीक्षा ली थी। अनेक ग्रंथोंका अभ्यास करनेके बाद उनको पंडित पद मिला था। हीरविजयसूरिने उन्हें योग्य समझकर अकबर बादशाहके पास रक्खा था । अकबर भी उनके उपदेशोंसे बहुत प्रसन्न हुआ था। उसी प्रसन्नताके कारण उसने उनके उपदेशोंसे अनेक अच्छे अच्छे कार्य किये थे। उन कार्योंका वर्णन छठे प्रकरणमें किया जा चुका+ है - अकबरका देहान्त हो गया, उसके बाद भानुचंद्रनी फिरसे
आगरे गये थे । वहाँ उन्होंने जहाँगीरसे परवानोंका-जो अकबरने दिये थे---अमल कायम रखनेके लिए हुक्म लिया था । अकबरकी तरह जहाँगीरकी भी भानुचंद्रजी पर बहुत श्रद्धा थी। जब वह मांडवगढ़में था तब मनुष्य भेजकर उसने भानुचंद्रजीको अपने पास बुलाया था । वहाँ उसने अपने लड़के शहरयारको भानुचं
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४ पृ. १४४ से १४७ तक देखें।
* ये वेही सूरचंद्रजी पंन्यास है कि, जिन्होंने धर्मसागरजी उपाध्यायके बनाये हुए 'उत्सूत्रकंदकुद्दाल' नामक ग्रंथको आचार्य विजयदानसूरिजीकी आज्ञासे पानीमें डुबा दिया था ( देखो ऐतिहासिक राससंग्रह भा. ४ था पृ. १३).
+ देखो पृ. १४७-१५४.
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