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खुरीश्वर और सम्राट् । खंभातके पास बसे हुए अकवरपुरमेंx उन्होंने शरीर छोड़ा था। उनका स्तूप बनवानेके लिए जहाँगीर बादशाहने दश बीघे जमीन मुफ्तमें दी थी। और तीन दीन तक पाखी पाली थी ( बाजार आदि बंद रखाये थे।) उनका जहाँ अग्निसंस्कार हुआ था वहाँ खंभातनिवासी सोमजीशाहने स्तूप कराया था। *
___x-अकबरपुर खंभातके पास एक पुरा है । कवि ऋषभदासकी बनाई हुई और उसीके हाथसे लिखी हुई चैत्यपरिपाटी ' को देखनेसे मालूम होता है कि, उस समय वहाँ तीन मंदिर थे । १- वासुपूज्यजीका, २. शान्ति माथजी का (उसमें इक्कीस जिनबिंब थे) और ३- आदीश्वरका उसमें बीस प्रतिमाएँ थीं । कालके प्रभावसे आज उस स्थान पर एक भी मंदिर या प्रतिमा नहीं है। __ *-सोमजी शाहने जो स्तूप बनवाया उसमेंका अकबरपुरमें कुछ भी नहीं है । मगर खंभातके भोयराबाड़े शान्तिनाथका मंदिर है । उसके मूल गभारेमें-जहाँ प्रतिमा स्थापित होती ह उस स्थानमें -बायें हाथकी तरफ एक पादुकावाला पत्थर है। उसके लेखसे ज्ञात होता है कि, यह वही पादुका है जो सोमजी शाहने विजयसेनसूरिजीके स्तूप पर स्थापित की थी । कालके प्रभावसे अकबरपुरकी स्थिति खराब हो जाने पर यह पादकावाला पत्थर यहाँ साया गया होगा । इस लेखसे निम्न लिखित बातें मालूम होती हैं । " वि. सं० १६७२ के माघ सुदी १३ रविवारके दिन सोमजीने अपने तथा अपने कुटुंबियों के-बहिन धर्माई, स्त्रियाँ सहजलदे और वयजलदे, पुत्र सूरजी
और रामजी आदिके कल्याणार्थ, विजयसेनसूरिकी यह पादुका उनके शिष्य विजयदेवसूरिसे स्थापित कराई । सोमजी, खंभातनिवासी वृद्धशाखीय ओसवाल शाह जगसीका पुत्र था। उसकी माता, काका और काकीके नाम क्रमश. तेजलदे, श्रीमल्ल और मोहणदे थे । लेखमें लिखे हुए'पादुकाः प्रोत्तुंगस्तूपसहिताः कारिताः ' इन शब्दोंस यह भी सिद्ध होता ह कि, यह पादुका एक ऊँचे स्तूपके साथ स्थापन की गई थी। पूर्ण लेख इस प्रकार है
॥६० संवत् १६७२ वर्षे माधसितत्रयोदश्यां रवौ वृद्धपाणीय । स्तंभतीर्थनगरपास्तव्य उसषालक्षातीय सा० श्रीमल
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