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प्रकरण नवाँ ।
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शिष्य-परिवार |
ह बात निर्विवाद है कि, पुण्यकी प्रबलताके विना अधिकार नहीं मिलता । एक ही माताकी कुखसे दो पुत्र उत्पन्न होते हैं, मगर पुण्यकी * प्रबलता और हीनताके कारण एकको हजारों-लाखों
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मनुष्य मानते हैं; उसके वचनोंको, ईश्वरीय बाक्य
समझ कर लोग मस्तक पर चढ़ाते हैं और उसकी कलम से लिखे गये शब्दों की सत्यताको संसार स्वीकार करता है और दूसरेको कोई पूछता भी नहीं है । हजारों मनुष्य सम्मान प्राप्त करनेके लिए जीतोड़ परिश्रम करते हैं; परन्तु उन्हें सम्मान नहीं मिलता; हजारों घुटने टेककर प्रतिष्ठित बननेके लिए ईश्वरसे प्रार्थना करते हैं, मगर उनकी प्रतिष्ठा नहीं होती । इसका कारण ? कारण पुण्यकी कमी ही है । एक बात और भी है । किसी भी चीजकी अभिलाषा उस वस्तुकी प्राप्तिमें बाधक होती है ।
अनमाँगे मोती मिलें, माँगी मिले न भीख ।
यह लोकोक्ति सत्यसे ओतप्रोत भरी है। जो नहीं माँगता है, उसको हरेक चीज़ अनायास ही मिलजाती है । निःस्पृह और निरीह मनुष्योंको पदार्थ अनायास ही मिलजाते हैं। अपने चरित्र प्रथम नायक सूरिजी कितने निःस्गृह थे सो उनके जीवनकी जो घटनाएँ अब तक कही गई हैं उनसे भली प्रकार मालुम हो चुका है । उनकी
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