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दीक्षादान । झानेसे वे समझ गये थे। नवदीक्षित रामजी खंभात बुलाया गया और उसकी दीक्षाके लिये उत्सव मनाया गया। .
उपर्युक्त प्रकारसे मेघकुमार ( मेघविजय ) आदि ग्यारह मनुप्योंने एक साथ दीपा ली। अहमदाबादमें भी इसी प्रकार एक प्रसंग बना था। वहाँ भी सूरिजीने एक साथ अठारह मनुष्योंको दीक्षा दी थी।
वीरमगाँवमें वीरजी मलिक नामका एक वजीर रहता था। वह पोरवाल ज्ञातिका था । यह मनुष्य बड़ा नामी और प्रभावशाली था । पाँचसौ घुड़सवार हर समय उसके साथ रहते थे। वीरजीका पुत्र सहसकरण मलिक था । यह भी बहुत प्रसिद्ध था । महम्मदशाह * बादशाहका मंत्री था। सहसकरणके गोपालजी नामका एक पुत्र था।
गोपालजीकी बचपनहीसे धर्म पर अच्छी प्रीति थी। उसका हृदय विषयवासनासे सदा विरक्त रहता था। गोपालजी साधुओंके सहवासमें ज्यादा रहता था। उसने छोटी उम्रमें ही न्याय-व्याकरण आदिका अच्छा अभ्यास कर लिया था। नैसर्गिक शक्तिके कारण वह अपनी छोटी आयुहीमें कविता करने लगा था । बारह वर्षकी आयुमें उसने ब्रह्मचर्यव्रत लिया था।
. थोड़ेही कालके बाद गोपालजीका हृदय वैराग्यवासित हो गया। उसके हृदयमें दीक्षा लेनेकी भावना लहराने लगी। उसने हार्दिकभाव अपने कुटुंबियोंसे कहे । कुटुंबी विरोधी हुए। मगर वह अपने विचारसे न टला । इतना ही नहीं, उसने अपने भाई कल्याणजी और अपनी
* यह वह महम्मदशाह है कि, जिसने ई. स. १५३६ से १५५४ तक राज्य किया था । विशेषके लिये देखो 'मुसलमानी रिसायत' (गुजरात बर्नाक्युलर सोसायटी अहमदाबाद द्वारा प्रकाशित ) पृ. २१२,
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