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सूरीश्वर और सम्राट् ।
ध्यान दे सकते थे ! कदापि नहीं। तो भी अपने चरित्रके प्रथम नायक श्रीमान् हीरविजयसूरिने समय समय पर उनपर अपने निष्कलंक चारित्र और उपदेश का प्रभाव डाल कर उनसे कई महत्वके कार्य कराये हैं । यद्यपि उनको किसी राजामहाराजा, सेठ साहूकार या फौजदार सूबेदार से कोई मतलब न था - 'निःस्पृहस्य तृणं जगत् ' के समान उनको किसीकी परवाह न थी, तथापि जीवोंके कल्याणकी कामना उनके अन्तःकरण में स्थापित थी । उसी कामनाके वश होकर वे जीवोंका कल्याण कराने के लिए, सूबेदारों या राजामहाराजाओंके निमंत्रणोंको स्वीकार करते थे और अनेक प्रकार के कष्ट उठाकर भी उनके दर्बारमें आते जाते थे ।
अनेक राजामहाराजाओं और सूबेदारों पर सूरिजीने प्रभाव डाला था; उनको सन्मार्ग पर चलाया था, मगर हम उन सबका उल्लेख न कर उनमें से कुछ का संक्षिप्त वृत्तान्त यहाँ लिखेंगे ।
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कला ख़ाँ ।
वि० सं० १६३० ई० सं० १९७४ के लगभग जब सूरिजी
* कलाख़ाँका खास नाम खानेकलानमीरमहम्मद था | वह अघखाँका बड़ा भाई था । हुमायूँ और कामरानका यह सेवक धीरे धीरे अकबर के समय में बहुत ऊँचे दर्जे तक पहुँचा था । बहादुरी के अनेक काम करके अच्छा नाम कमाया था । बादशाहने सं० १५७२ ई० में गुजरातको फिर से जीतने के लिए कलाखाँको पहिले भेजा था । मार्ग में सीरोही के पास एक राजपूतने किसी स्पष्ट कारणके विना ही उसे घायल कर दिया था । मगर कई दिनके बाद उसने अच्छा होकर गुजरातको जीता। इससे वह पाटनका सूबेदार नियत हुआ । ई० स० १५७४ में पाटनहीमें उसकी मृत्यु हुई थी । विशेष जानने के लिए वॉकमॅन कृत आईन-इ-अकबरी के अंग्रेजी अनुवादके प्र० भा० का ३१५ वा पृष्ठ देखो ।
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