________________
सूबेदारों पर प्रभाव ।
१८३
पाटनमें पधारे थे, तब वहाँके हेमराज नामके जैनमंत्रीने, विजयसेनसूरिके पाटमहोत्सवके अवसर पर, बहुतसा धन खर्च करके अनेक शुभ कार्य किये थे । उस समय कलाखाँ पाटनका सूबेदार था। उसके जुल्मसे प्रना बहुत व्याकुल हो रही थी। प्रजा उससे इतनी नाराज थी कि, एक भी मनुष्यकी जुबान पर उसकी भलाईका शब्द न आता था। उस नगरमें पहुँच कर सूरिजीने अनेक व्याख्यान दिये। उनसे शनैः शनैः समस्त नगरमें उनकी विद्वत्ताकी प्रशंसा फैल गई। कलाखाँके कानों तक भी सूरिजीकी प्रशंसा पहुँची । इससे उसके हृदयमें सरिजीसे मिलनेकी इच्छा उत्पन्न हुई। उसने उन्हें मनुष्य भेजकर अपने पास बुलाया । यद्यपि इससे सूरिजीके अनुयायिकोंकोश्रावकोंको बहुत ही ज्यादा भय मालूम हुआ था, तथापि सूरिजीके निर्भीक हृदयमें कोई आशंका उत्पन्न नहीं हुई थी। वे समझते थे कि, सत्ये नास्ति भयं कचित् ।
बहुत देर तक अनेक तरहकी बातें होती रहीं। फिर कलावाने पूछा:-" महाराज ! सूर्य ऊँचा है या चंद्रमा ?
सूरिजीने उत्तर दियाः-" चंद्रमा ऊँचा है। सूर्य उससे कुछ नीचा है।"
__ यह उत्तर सुन कर कलाखाँको कुछ आश्चर्य हुआ। उसने कहा:-" क्या ? सूर्य से चंद्रमा ऊँचा है ? "
सूरिजीने गंभीरतापूर्वक उत्तर दियाः--" हाँ सुर्यसे चंद्र ऊंना है।"
कलाखा बोला:---"हमारे यहाँ तो सूर्यसे चंद्रमा नीचे बताया गया है, तुम चंद्रमाको ऊँचा कैसे बताते हो?"
सूरिजीने कहा:-" न तो मैं सर्वज्ञ हूँ और न मैं वहाँ ना कर देख ही आया हूँ। मैंने जो बात अपने गुरुकी जबानसे सुनी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org