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सूरीश्वर और सम्राट् । आजमखाँ इतने बरसोंमें आपने कोई चमत्कार दिखानेवाली शक्ति प्राप्त की है ? कभी आपको खुदाके दर्शन हुए हैं ?
सूरिजी-खाँसाहिब ! खुदा संसारमें नहीं आ सकता । इसलिए उसके दर्शन भी कैसे हो सकते हैं ? और चमत्कार दिखानेवाली शक्तिसे हमें कोई प्रयोजन नहीं है । हम घर, बार, धनमाल, स्त्री, पुत्र आदि समस्त पदार्थोंका त्याग कर चुके हैं। हमें न राज्यप्राप्तिकी इच्छा है और न पैसेहीका लोभ है। हमें चमत्कारोंसे क्या लेना देना है ? हाँ, दुनियामें चमत्कारिणी विद्याएँ जुरूर मौजूद हैं। परन्तु उनका साधन करनेवाले निःस्पृही और त्यागी महात्मा संसारमें बहुत ही थोड़े हैं । कालिकाचार्य ईंटका सोना बना देते थे ? सनत्कुमारके थूकसे शरीरका रोग मिट जाता था ? पहिले इसी तरहकी और भी अनेक विद्याओंके जाननेवाले महापुरुष थे। मगर उन्होंने अपनी संततिको इसलिए विद्याएँ नहीं दी कि वे इन विद्याओंका अभिमान करके कहीं अपना साधुत्व न नष्ट करदें। अगले जमानेके साधु विद्याओंका दुरुपयोग नहीं करने थे । जब कभी धर्मका कोई कार्य आपड़ता था तभी वे उनका उपयोग करते थे । अब भी साधु यदि अपने चारित्रको निर्मल रक्खें और साधुधर्मको बराबर पालें तो इच्छानुसार कार्य कर सकते हैं। चारित्रका प्रभाव ही ऐसा है कि, मनुष्य बिना जबान हिलाये ही हजारों पर अपना प्रभाव डाल सकता है। चारित्रके प्रभावहीसे साधुओंके पास आनेवाले जातिवैरवाले जन्तु भी अपना स्वभाव भूल जाते हैं। मगर चाहिए चारित्रकी सम्पूर्ण निर्मलता। ऐसे चारित्रवानको मंत्र-तंत्रादिकी भी आवश्यकता नहीं पड़ती। उसके निर्मल चारित्रहीसे सारे कार्य सिद्ध हो जाते हैं। हम इस समय इसलिए खुदाकी बंदगी करते हैं और साधुधर्म पालते हैं कि, धीरे धीरे हम भी खुदाके जैसे हो जायें।
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