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सूबेदारों पर प्रभाव ।
नहीं दिया जाता है तो वे जब तब, भलेसे भले आदमीका मी अपमान करते नहीं अचकाते हैं । इसलिए भविष्यमें ऐसी बात न हो इसका प्रबंध करनेके लिए, धनविजय नामके साधु हीरविजयसूरिके पाससे रवाना होकर अकबरके पास चले । शान्तिचंद्रजी उपाध्याय-जिनके विषयमें छठे प्रकरणमें लिखा जा चुका है-उस समय अकबरके पास ही थे । धनविजयजी जाकर उनसे मिले । शान्तिचंद्रजीने जाकर सारी बातें बादशाहसे कहीं। बादशाह क्रुद्ध होकर बोला:-"उसको बाँध कर जूते मारते हुए यहाँ लानेका, मैं इसी वक्त हुक्म देता हूँ।"
उस समय हबीबुल्लाहका हीरानंद नामका एक अनुचर भी वहाँ विद्यमान था। उसने बादशाहसे नम्रतापूर्वक प्रार्थनाकी कि, " खुदावन्द ! माफ करें । मैं पत्र लिखकर सब ठीक ठाक कर देता हूँ।"
मगर बादशाहने उसकी प्रार्थना पर ध्यान नहीं दिया और हुक्म दिया कि,-" जिसने हीरविजयसूरिका अपमान किया है वह मारा जाय ।"
यह आज्ञापत्र लेकर धनविजयजी गुजरातमें सूरिजीके पास पहुँचे । श्रावक बहुत प्रसन्न हुए। यह हाल जब हबीबुल्लाहको मालूम हुआ; श्रावकोंके पास जब उसने आज्ञापत्र पढ़ा, तब उसके होश उड़ गये । वह घबराहटके साथ विचारने लगा,-अब क्या होगा ? मेरे प्राण कैसे बचेंगे ? मुझे यह कैसी दुर्बुद्धि सूझी कि जिस पुरुषका सम्राट अकबर भी मान करता है उसका अपमान किया ।" अनेक प्रकारके विचारोंके बाद उसने अपने कई आदमी सूरिजीको सादर खंभातमें लानेके लिए भेजे । सूरिनी उस समय किसी अन्य गाँवमें थे।
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