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सूबेदारों पर प्रभाव |
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और काठी । घमसान युद्ध हुआ । आज़मखाँको सूरिजी पर बहुत श्रद्धा थी । उसको विश्वास था कि, लड़ाईके लिए तैयार होते वक्त ही मुझे सूरिजी महाराजके प्रतिनिधि श्रीधनविजयजीके दर्शन हुए थे इसलिए अवश्यमेव मेरी जीत होगी । आज़मखाँ इसी विश्वासके साथ युद्ध कर रहा था । उसकी सेना धीरता और वीरताके साथ आगे बढ़ी जा रही थी । अचानक जामनगरके जाम सताजामका घोड़ा चमका । इससे दूसरे सवारोंमें भी गड़बड़ी मच गई । आज़म खाँका दाव चल गया । उसकी फौजने आगे बढ़कर शत्रुको परास्त किया । यद्यपि जामके जसा वजीरने बहुत वीरता दिखाई परन्तु अन्तमें वह मारा गया और सताजामको युद्धस्थल छोड़कर भाग जाना पड़ा ।
नयानगर ( जामनगर ) को जीतकर आज़मखाने जूनागढ़पर चढ़ाई की। वहाँ भी विजय प्राप्त कर वापिस अहमदावाद आया
१ सताजामका खास नाम सतरलसाल ( शत्रुशल्य ) था । वह जाम विभोजीके चार पुत्रोंमें सबसे बड़ा था । वह जामसता के नामसे प्रसिद्ध हुआ था । जब वह सिंहासन पर बैठा तब गुजरातमें बहुत बड़ी अव्यवस्था थी । ई० स० १५६९ में उसके पिता के स्वर्गवासी होने पर वह राज्य - गद्दी पर बैठा था । जाम सताजी के समयहीसे सुल्तान मुजफ्फरकी आज्ञा से जामनगर के जाम कोरी ( जामनगर राज्यका चलनी सिक्का ) पाड़ने लगे थे । इस जामके वजीरका नाम जसा वजीर कहा जाता है । उसका पूरा नाम वजीर जसा लाधक था । उसने और जामके पुत्र कुंवर अजाजीने बहादुरी के साथ आज़मखाँ से लड़ाई की थी । मगर अन्तमें दोनों ही युद्धमें काम आये | आज़मख़ाँ और जाम सताजीके इस युद्धका विशेष वृत्तान्त जिनको जानना हो वे ' अकबरनामा के तीसरे भाग के ( बेवरिजकृत अंग्रेजी अनुवाद ) पृ० ९०२ में; ' काठियावाड़ सर्व संग्रह ' ( गुजराती अनुवाद ) के पृ. ४५४-४५५ में; • मीरा अहेमदी ( गुजराती अनुवाद ) के ५० १७७ में एवं मीराते सिकंदरी ( गुजराती अनुवाद ) पे. ४६९ आदिमें
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