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सूरीश्वर और सम्राट् ।
अमारी घोषणा करादी- कोई किसी जीवको न मारे ऐसा ढिंढोरा
पिटवा दिया ।
आज़मखां * ।
वि० सं० १६४८ में हीरविजयसूरि अहमदाबाद गये थे । उस समय आज़मखाँ वहाँका सूबेदार था। वह दूसरी वार इस सूबेमें आया था । उसकी सूरिजी पर बहुत श्रद्धा थी। एक वार वह सोरठ पर चढ़ाई करने की तैयारी कर रहा था, उस समय धनविजयजी साधुने उससे मिल कर कहा :"मुझे सूरिजी महाराजने आपके पास भेजा है।" उसने उत्सुकता के साथ पूछा:- " महाराजने मेरे लायक कोई कार्य बताया है ?" धनविजयजीने उत्तर दिया:-“हाँ, आप जानते हैं कि, हमारे पवित्र तीर्थगिरिनार, शत्रुंजय आदि बादशाहकी तरफसे हमारे सिपुर्द हुए हैं। उनके परवाने भी हमें दिये गये हैं, मगर अफ्सोस है कि, अबतक उनपर पूरा अमल नहीं हुआ। कई विघ्न बीच बीचमें आजाया करते हैं, इस लिए आप पूरा बंदोबस्त कर दीजिए । "
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उसने उत्तर दिया – “सूरिजी महाराजसे मेरा सलाम कहना और कहना कि, इस वक्तमें युद्धमें जारहा हूँ । वापिस आने पर आपकी आज्ञा का पालन करूँगा । "
धनविजयजी सूरिजी के पास लौट आये । आजमखाने सोरठ पर चढ़ई की। सबसे पहिले उसने जामनगर पर हमला किया। एक तरफ थी आज़म ख़ाँकी फौज और दूसरी तरफ थे हाला, झाला
* यह वही आज़मखाँ है जो खानेआज़म या मिर्ज़ा अज़ीज़कोका के नामसे पहिचाना जाता है । यह ई० स० १५८७ से १५९२ तक अहमदाबादका सूबेदार था । विशेष जाननेके लिए मीराते सिकंदरी में (गुजराती अनुवाद ) १० १७२ से १८५ तक देखो ।
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