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सूरीश्वर और सम्राट् ।
सूरिजीको तो अपने मानापमानका कुछ ख्याल था ही नहीं । भविष्य में साधुओंका अपमान न हो इसी लिए उन्होंने इतना किया था, इसलिए वे आनंदपूर्वक खंभातकी ओर चले । जब वे शहरसे थोड़ी दूर रहे तब हबीबुल्लाह अपनी चतुरंगिनी सेना सहित उनका स्वागत करने के लिए गया और उनको देखते ही उनके पैरोंमें जा गिरा व उनके गुणगान करने लगा ।
सूरिजी जत्र नगर में उपाश्रयमें गये तब हबीबुल्लाह उनके पास गया और क्षमा याचना करता हुआ बोला :-- " महाराज ! आप दयालु हैं। मैंने आपका जो अपमान किया है उसके लिए मुझे क्षमा कीजिए । मैं खुदाको साक्षी रखकर कसम खाता हूँ कि भावीमें फिर कभी किसी महात्माका अपमान नहीं करूँगा । "
सूरिजी बोले :- "सुल्तान साहब ! मैंने तो आपको पहिलेहीसे क्षमा कर दिया है । मेरे हृदयमें आपके लिए कोई दुर्भाव नहीं है । इसीका यह प्रमाण है कि, आपने मुझे अपने गाँवमें बुलानेको मनुष्य भेजे और मैं तत्काल ही आ गया। यदि मेरे दिल में आपके लिए कोई बुरा खयाल होता तो मैं हरगिज यहाँ न आता ।
हबीबुल्लाह इससे बहुत प्रसन्न हुआ। सरिजीकी मुखमुद्रा और असल फकीरीका निरीक्षण करते ही उसके अन्तःकरण में किसी और ही तरह भाव उत्पन्न हुए । उसको विश्वास हुआ कि ऐसे गुणी महात्माका यदि अकबर बादशाह और अन्यान्य लोग सत्कार करते हैं तो इसमें आश्चर्यकी कोई बात नहीं है ।
उसके बाद भी हबीबुल्लाह प्रायः सूरिजीका उपदेश सुननेके लिये उपाश्रय में आया करता था । एक वार सूरिजी व्याख्यान बाँच रहे थे तब आया । उस समय सूरिजीके मुखपर
वह
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