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सूरीश्वर और सम्राट्।
" कसाई मच्छीमार और ऐसे ही दूसरे मनुष्योंक-जिनका रोजगार हिंसा करना ही है-निवासस्थान बसतीसे अलग होने चाहिए।" ___ जीवदयाके ये कितने अच्छे विचार हैं ! जीवदयाहीके क्यों अपनी उस प्रनाके-जो जीवहिंसा और मांसाहारसे घृणा करती थी-अन्त:करण दुःखी न हों इसका भी पूरा खयाल रखता था । मुसलमान सम्राट अकबरके उपर्युक्त विचारों और कार्यों पर आर्यावर्तके उन देशी राजाओंको ध्यान देना चाहिए कि, जो अपनी प्रजाके सुखदुःखका कुछ भी खयाल नहीं रखते हैं । अस्तु । . ऊपरके वृत्तान्तसे हमें यह तो निश्चय हो चुका है कि, अकबरकी जीवनमूर्तिको सुशोभित-देदीप्यमान करनेके लिए जैसी चाहिए वैसी चतुराई यदि किसीने दिखाई हो तो वे हीरविजयसूरि आदि जैनसाधु ही थे। दूसरे शब्दोंमें कहें तो अकबर बादशाहकी जीवनयात्राको सफल बनानेमें सबसे ज्यादा प्रयत्न हीरविजयसूरि आदि जैनसाधुओंने ही किया था । इतना होने पर भी आश्चर्य इस बातका है कि अकबरका जीवन लिखनेवाले जैनेतर लेखकोंने, इस बातका उल्लेख नहीं किया है कि, अकबर पर जैनसाधुओंका कितना प्रभाव था । इसका मूलकारण क्या है ? इसका विचार करना यहाँ उचित होगा।
. यह बात तो निर्विवाद सिद्ध है कि,-अकबरके दर्बारमें रहने वाले शेख अबुल्फजल और बदाउनी अकबरके समयका खास इतिहास लिखनेवाले हैं। अकबरके विषयमें आजतक जो कुछ लिखा गया है उन्हींके ग्रंथोंके आधारसे लिखा गया है। वे ( अबुल्फ़ज़ल और बदाउनी) अकबरके ऊपर प्रभाव डालनेवालोंमें 'जैनसाधुओं का नाम देना भूले नहीं है. इतना जरूर है कि उन्होंने : जैनसाधु' शब्द न लिखकर
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