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विशेष कार्यसिद्धि। ( मुसलमान ) धर्मके दोष बतानेके लिए बुद्धिपूर्वक, परंपरागत प्रमाण देते थे। वे ऐसी दृढता और युक्तिसे अपने मतका समर्थन करते थे कि, उनका कल्पना तुल्य मत स्वतः सिद्ध प्रतीत होता था। उसकी सत्यता के विरुद्ध नास्तिक भी कोई शंका नहीं उठा सकता था।"
इतना सामर्थ्य रखनेवाले जैनसाधु अकबर पर इतना प्रभाव डाले, यह बात क्या होने योग्य नहीं है ? अस्तु ।।
अकबरने अपने वर्तावमें जब इतना परिवर्तन कर दिया था, तब इससे यह परिणाम निकालना क्या बुरा है कि अकबरके दया संबंधी विचार बहुत ही उच्च कोटि पर पहुँच गये थे। इस बातको दृढ करने वाले अनेक प्रमाण भी मिलते हैं। बादशाहने राजाओंके जो धर्म प्रकाशित किये थे उनमें एक यह धर्म भी था,
" x संसार दयासे जितना वशमें होता है उतना दूसरी किसी भी चीनसे नहीं होता। दया और परोपकार, ये सुख दीर्घायुके कारण हैं।"
अबुल्फज़ल लिखता है,-"अकबर कहा करता था कि, यदि मेरा शरीर इतना बड़ा होता कि, मांसाहारी जीव सिर्फ मेरे शरीरको खाकर ही तृप्त हो जाते और दूसरे जीवोंके भक्षणसे दूर रहते तो मेरे लिए यह बात बड़े सुखकी होती । या मैं अपने शरीरका एक अंश काटकर मांसाहारियोंको खिला देता और फिरसे वह अंश प्राप्त हो जाता तो मैं बड़ा प्रसन्न होता । मैं अपने एक शरीरद्वारा मांसाहारियोंको तृप्त कर सकता । "+
__दया संबंधी कैसे सुंदर विचार हैं ! मांसाहारियोंको अपना शरीर खिलाकर तृप्त करने और दूसरे जीवोंको बचानेकी भावना _* आईन-इ-अकबरी, खंड तीसरा, जेरिटकृत अंग्रेजी अनुवाद. पे० ३८३
+ आईन-इ-अकबरी, खंड ३ रा, पृ. ३९५.
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