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प्रतिबोध । होंगे। जब मैंने चितोड़गढ़ फतेह किया था तब मैंने जो पाप किये थे वे बयानसे बाहिर हैं । उस समय राणाके मनुष्यों और हाथी घोड़ोंकी तो बात ही क्या थी ? मैंने चितोड़के एक कुत्ते तककोभी मारे विना नहीं छोड़ा था। चितोड़में रहनेवाला कोई भी जीव मेरी फोनकी दृष्टिम आता तो वह कत्ल ही होता। महाराज ! ऐसे ही ऐसे पाप करके मैंने कितने ही किले जीते हैं। अलावा इसके शिकारमें भी मैंने कोई कसर नहीं की । गुरुजी ! मेड़ताके रस्ते आते हुए आपने मेरे बनवाये हुए उन हनीरोंको * देखे होंगे, जिनकी संख्या ११४ है । हरेक हजीरे पर हरिणोंके पाँच पाँच सौ सींग लगाये गये हैं । मैंने छत्तीस हजार शेखोंके घरमें भाजी बँटाई थी। उसमें हरेक घरमें एक हिरणका चमड़ा, दो सींग और एक महोर दी थी।
* हजीरोंके संबंधों 'श्रीहीरविजयसूरिरासमें '. कवि ऋषभदासने अकबरके मुखसे निम्नलिखित शब्द कहलाये हैं,-- " देखे हजीरे हमारे तुम्ह, एकसोचउद कीए वे हम्म;
अकेके सिंग पंचसे पंच पातिग करता नहि खलखंच ॥७॥" बदाउनीके कथनसे इस बातको पुष्टि मिलती है। वह लिखता है:
“ His Majesty's extreme devotion induced him every year to go on a pilgrimage to that city, and so he ordered a palace to be built at every stage between Agrah and that place, and a pillar to be erected and a well sunk at every coss. "
( Vol. II by W. H. Lowe, M. A. P. 176.) भावार्थ-प्रतिवर्ष बादशाह अपनी अत्यन्त भक्तिके कारण उस नगर ( अजमेर ) जाता था आर इसीलिए उसने आगरे और अजमेरके बीचमें स्थान स्थान पर जहाँ जहाँ मुकाम होते थे-महल और एक एक कोसकी दूरीपर एक कूवा व एक स्तंभ ( हजीरा) बनवाया था।
आगरे और अजमेरके बीचमें २२८ माइलका अंतर है। इस हिसाबसे भी ११४ हजीरे बमवानेका कवि ऋषभदासका कथन सत्य प्रमाणित होता है।
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